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वसु का रसातल-प्रवेश]
भगवान् श्री अरिष्टनेमि
३२६
यथा :
देवानां तु मतं ज्ञात्वा, वसुना पक्षसंश्रयात् ।
छागेनाजेन यष्टव्यमेवमुक्त वचस्तदा ।।१३।। यह सुनकर वे सभी सूर्य के समान तेजस्वी ऋषि क्रुद्ध हो उठे और विमान पर बैठकर देवपक्ष का समर्थन करने वाले वसु से बोले-"राजन् ! तुमने यह जान कर भी कि 'अज' का अर्थ अन्न है, देवताओं का पक्ष लिया है अतः तुम आकाश से नीचे गिर जाओ । आज से तुम्हारी आकाश में विचरने की शक्ति नष्ट हो जाय । हमारे शाप के आघात से तुम पृथ्वी को भेद कर पाताल में प्रवेश करोगे । नरेश्वर ! तुमने यदि वेद और सूत्रों के विरुद्ध कहा हो तो हमारा यह शाप तुम पर अवश्य लागू हो और यदि हम लोग शास्त्र-विरुद्ध वचन कहते हों तो हमारा पतन हो जाय ।"
ऋषियों के इतना कहते ही तत्क्षण राजा उपरिचर वसु आकाश से नीचे आ गये और तत्काल पृथ्वी के विवर में प्रवेश कर गये। इस सन्दर्भ में महाभारतकार के मूल श्लोक इस प्रकार हैं :
कुपितास्ते ततः सर्वे, मुनयः सूर्यवर्चसः ।।१४।। ऊचुर्वसु विमानस्थं, देवपक्षार्थवादिनम् । सुरपक्षो गृहीतस्ते, यस्मात् तस्माद् दिवःपत ॥१५॥ अद्यप्रभृति ते राजन्नाकाशे विहता गतिः । अस्मच्छापाभिघातेन, महीं भित्वा प्रवेक्ष्यसि ।।१६।। (विरुद्ध वेदसूत्राणामुक्त यदि भवेन्नृप । वयं विरुद्धवचना, यदि तत्र पतामहे ।) ततस्तस्मिन् मुहूर्तेऽथ, राजोपरिचरस्तदा । प्रधो वै संबभूवाशुः भूमेर्विवरगो नृप ।।१७।।
[महाभारत, शान्तिपर्व, मध्याय ३३७] वस के पाठ पुत्रों में से छः पुत्र क्रमशः एक के बाद एक राजसिंहासन पर बैठते ही दैवी-शक्ति द्वारा मार डाले गये, शेष दो पुत्र 'सुवसु' और 'पिहद्धय' 'शुक्तिमती' नगरी से भाग खड़े हुए । 'सुवसु' मथुरा में जा बसा । और 'पिहय' का उत्तराधिकारी राजा 'सुबाहु' हुआ । सुबाहु के पश्चात् क्रमश: 'दीर्घबाहु', वज्रबाहु, अद्ध बाहु, भानु और सुभानु नामक राजा हुए । सुभानु के पश्चात् उनके पुत्र यदु इस हरिवंश में एक महान् प्रतापी राजा हए । यदु के वंश में 'सौरी' और 'वीर' नाम के दो बड़े शक्तिशाली राजा हुए । महाराज सौरी ने सौरिपुर और वीर ने सौवीर नगर बसाया ।' १ सोरिणा सोरियपुरं निवेसावियं, वीरेण सौवीरं । [वसु० हि०, पृ० ३५७]
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