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जैन धर्म का मौलिक इतिहास विसु का हिंसा-रहित यह ब्रह्मषियों ने देवताओं से कहा-"ये नरेश हम लोगों के संदेह दूर कर देंगे। क्योंकि ये यज्ञ करने वाले, दानपति, श्रेष्ठ तथा सम्पूर्ण भूतों के हितैषी एवं प्रिय हैं । ये महान् पुरुष वसु शास्त्र के विपरीत वचन कैसे कह सकते हैं ?"
इस प्रकार ऋषियों और देवताओं ने एकमत हो एक साथ राजा वसु के पास जाकर अपना प्रश्न उपस्थित किया--"राजन् ! किसके द्वारा यज्ञ करना चाहिए ? बकरे के द्वारा अथवा अन्न द्वारा? हमारे इस संदेह का माप निवारण करें। हम लोगों की राय में आप ही प्रामाणिक व्यक्ति हैं।"
तब राजा वसु ने हाथ जोड़कर उन सबसे पूछा-"विप्रवरो! आप लोग सच-सच बताइये, आप लोगों में से किस पक्ष को कोनसा मत अभीष्ट है ? अज शब्द का अर्थ आप में से कौनसा पक्ष तो बकरा मानता है मोर कोनसा पक्ष अन्न?" .
वसु के प्रश्न के उत्तर में ऋषियों ने कहा-"राजन् ! हम लोगों का पक्ष यह है कि अन्न से यज्ञ करना चाहिए तथा देवतामों का पक्ष यह है कि छाग नामक पशु के द्वारा यज्ञ होना चाहिये । अब आप हमें अपना निर्णय बताइये।"
वसु द्वारा हिसापूर्ण यज्ञ का समर्थन व रसातल-प्रवेश राजा वसु ने देवताओं का पक्ष लेते हुए कह दिया-"अज का अर्थ है छाग (बकरा) अतः बकरे के द्वारा ही यज्ञ करना चाहिए।"
१ महाभारतकार के स्वयं के शब्दों में यह प्राख्यान इस प्रकार दिया गया है :
तेषां संवदतामेवमृषीणां विबुधैः सह ।। मार्गागतो नृपश्रेष्ठस्तं देशं प्राप्तवान् वसुः ।।६।। अन्तरिक्षचरः श्रीमान्, समग्रबलवाहनः । तं दृष्ट्वा सहसाऽऽयान्तं वसु ते त्वन्तरिक्षगम् ।।७।। ऊचुद्विजातयो देवानेष च्छेत्स्यति मंशयम् । यज्वा दानपति: श्रेष्ठः सर्वभूतहित प्रियः ।।८।। कथंस्विदन्यथा ब्रूयादेष वाक्यं महान वसुः । एवं ते संविदं कृत्वा, विवुधा ऋषयस्तथा ।।६।। प्रपृच्छन् सहिताम्येत्य, वसु राजानमन्तिकात् । भो राजन् केन यष्टव्यमजेनाहोस्विदोषधः ।।१०।। एतन्नः संशयं छिन्धि प्रमाणं वो भवान् मतः । म तान् कृताञ्जलिर्भूत्वा, परिपप्रच्छ व वसु ।।११।। कस्य वै को मतः कामो, ब्रत सत्यं द्विजोत्तमाः । धान्यैर्यष्टव्यमित्येव, पक्षोऽस्माकं नराधिप ॥१२॥ देवानांतु पशुः पक्षो मतो राजन् वदस्व न;। [महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय ३३७1
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