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________________ महा० मे वम का उपा भगवान श्री अरिष्टनम विचरून-उपाख्यान एव उपरिचर गजा वस के उपाख्यानो से स्पष्टरूपेण सिद्ध होता है। यज्ञ में पशुबलि का वचनमात्र से अनमोदन करने के कारण उपरिचर वसू को रसातल के अन्धकारपूर्गा गहरे गर्त में गिरना पड़ा, इस सन्दर्भ में महाभारत में उल्लिखित वसु का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है "राजा वस् को घोर तपश्चर्या में निरत देखकर इन्द्र को शका हई कि यदि यह इसी तरह तपश्चर्या करते रहे तो एक न एक दिन उसका इन्द्र-पद उससे छीन लेंगे। इस आशंका से विह्वल हो इन्द्र तपस्वी वसु के पास पाया और उसे तप से विरत करने के लिये उसने समद्ध चेदि का विशाल राज्य देने के साथसाथ स्फटिक रत्नमय गगनबिहारी विमान एदं सर्वज्ञ होने का वरदान आदि दिये । वसु की राजधानी शुक्तिमती नदी के तट पर थी।" वसु का हिंसा-रहित यज्ञ "इन्द्र द्वारा प्रदत्त आकाशगामी विमान में विचरण करने के कारण ये उपरिचर वसू के नाम से लोक में विख्यात हए । उपरिचर वसु बड़े सत्यनिष्ठ, अहिंसक और यज्ञशिष्ट अन्न का भोजन करने वाले थे।" १ सर्वकर्मवहिंसा हि, धर्मात्मा मनुरब्रवीत् । कामकाराद् विहिंसन्ति, बहिर्वेद्यां पशून् नराः ।।५।। [शा० पर्व, अ० २६४] ..'अहिंसा सर्वभूतेभ्यो, धर्मेभ्यो ज्यायसी मता ।।६।। [वही] यदि यज्ञांश्च, वृक्षांश्च, यूपांश्चोद्दिश्य मानवाः । वृथा मांस न खादन्ति, नैषधर्मः प्रशस्यते ।।८।। [वहीं] सुरा मत्स्याः मधुमासमासवं कृसरोदनम् । घूतः प्रवर्तितं ह्यं तन्नं तद् वेदेषु कल्पितम् ।।६।। __ [वही]. मानान्मोहाच्च लोभाच्च, लौल्यमेतत्प्रकल्पितम् । विष्णुमेवाभिजानन्ति सर्वयज्ञेषु ब्राह्मणाः ।।१०।। [वही २ राजोपरिचरो नाम, धर्मनित्यो महीपतिः । वभूव मृगयां गन्तु, सदा किल धृतव्रतः ।।१।। स चेदिविषयं रम्यं, वसुः पौरवनन्दनः । इन्द्रोपदेशाज्जग्राह, रमणीयं महीपतिः ।।२।। (शेष अगले पृष्ठ पर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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