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________________ ३२४ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [उपरिचर वसु अदृष्ट शक्तियों द्वारा वसु तत्काल घोर रसातल में ढकेल दिया गया । उपस्थित जनसमुदाय पर्वत को धिक्कारने लगा कि इसने वसु का सर्वनाश करवा डाला । अधर्मपूर्ण असत्य-पक्ष का समर्थन करने के कारण राजा वसु नरक के दारुण दुखों का अधिकारी बना।' तत्पश्चात् नारद वहां से चले गये । पर्वत ने तत्कालीन राजा सगर के शत्रु महाकाल नामक देव की सहायता से यज्ञों में पशुबलि का सूत्रपात किया । महाभारत में वसु का उपाख्यान ___ महाभारत के शान्तिपर्व में भी वसुदेव हिण्डी से प्रायः काफी अंशों में मिलता-जुलता महाराज वसू का उपाख्यान दिया हना है । चेदिराज वसु द्वारा असत्य-पक्ष का समर्थन करने के कारण वैदिकी श्रुति 'अजैर्यष्टव्यम्' में दिये गये 'प्रज' शब्द का अर्थ त्रैवार्षिक यवों के स्थान पर छाग अर्थात बकरे प्रतिपादित किया जाकर यज्ञों में पशुबलि का सूत्रपात्र हा, इस तथ्य को जैन और वैष्णव दोनों परम्पराओं के प्राचीन और सर्वमान्य ग्रन्थ एकमत से स्वीकार करते हैं । प्राचीनकाल के ऋषि, महषि, राजा एवं सम्राट अज अर्थात वार्षिक यव, घृत एवं वन्य औषधियों से यज्ञ करते थे । उस समय के यज्ञों में पश-हिंसा का कोई स्थान ही नहीं था और यज्ञों में पशुबलि को घोरातिघोर पापपूर्ण, गहित एवं निन्दनीय दुष्कृत्य समझा जाता था, यह महाभारत में उल्लिखित तुलाधार-उपाख्यान, १ ततो उवरिचरो वसुराया, सोतीमतीए पचय-नारद विवाते 'प्रजेहि प्रबीजेहिं छगलेहि वा जइयग्वं' ति पसुवषघायमलियबयण साक्खिकब्जे देवया णिपाइयो प्ररि गति गमो । [वसुदेव हिण्डी, द्वि. खं., पृ० ३५७] २ न भूतानामहिंसाया, ज्यायान् धर्मोऽस्ति कश्चन । यस्मान्नोद्विजते भूतं, जातु किंचित् कथंचन ।। सोऽभयं सर्वभूतेभ्यः, सम्प्राप्नोति महामुने ।।३०।। [शान्ति पर्व, प्र० २६२] यदेव सुकृतं हव्यं, तेन तुष्यन्ति देवताः । नमस्कारेण हविषा, स्वाध्यायरोषधस्तथा ॥८॥ [शा० ५०, प्र० २६३] पूजा स्याद् देवतानां हि, यथा शास्त्रनिदर्शनम् ।....।। [वही] सतां वानुवर्तन्ते, यजन्ते चाविहिंसया । वनस्पतीनौषधीक्ष, फलं मूलं च ते विदुः ॥२६॥ [बही] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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