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________________ ३२१ उपरिचर वसु] भगवान् श्री अरिष्टनेमि काटकर उनसे उस स्फटिक पत्थर को आच्छादित कर दिया और अपने नगर में लौटने पर प्रधानामात्य को स्फटिक पत्थर के सम्बन्ध में अवगत किया। प्रधानामात्य ने वह स्फटिक पत्थर राजप्रासाद में मंगवा लिया और उस पर वसु का राजसिंहासन रख दिया। कहीं इस रहस्य का भण्डाफोड़ नहीं हो जाय, इस आशंका से स्फटिक पत्थर लाने वाले सब लोगों को उनकी स्त्रियों सहित प्रधानामात्य ने मरवा डाला । - स्फटिकशिला पर रखे राजसिंहासन पर बैठने के कारण वसु की ख्याति दिग्दिगन्त में फैल गई कि न्याय एवं धर्मपरायण होने के कारण वसू का राजसिंहासन प्राकाश में प्रधर रहता है और इस प्रकार वह उपरिचर वसु के नाम से लोक में प्रख्यात हो गया। प्राचार्य क्षीरकदम्बक की मृत्यु के पश्चात् पर्वत उपाध्याय बना और अध्यापन का कार्य करने लगा। पर्वत अपने शिष्यों को 'अजैर्यष्टव्यं' इस वेदवाक्य का यह अर्थ बताने लगा कि 'बकरों से यज्ञ करना चाहिए।' __ नारद को जब इस अनर्थ की सूचना ग्लिी तो वह पर्वत के पास पहुंचा। पर्वत ने इस गर्व से कि वह राजा के द्वारा पूजनीय है, जन-समुदाय के समक्ष कहा--"प्रजा अर्थात् बकरों से यज्ञ करना चाहिए।' नारद ने पर्वत को अच्छी तरह समझाया कि वह परम्परागत पवित्र वेद-वाक्य के अर्थ का अनर्थकारी प्रलाप न करे । अज का अर्थ ऋषि-महर्षि और श्रुतियां सदा से त्रैवार्षिक यव-बीही बताती पा रही हैं न कि छाग । नारद द्वारा बार-बारसमझाने-बुझाने पर भी पर्वत ने अपना दुराग्रह नहीं छोड़ा। ज्यों-ज्यों विवाद बढ़ता गया, त्यों-त्यों पर्वत का दुराग्रह भी बढ़ता गया। अन्त में क्रुद्ध हो पर्वत ने अपने असत्य-पक्ष पर अड़े रहकर एकत्रित विद्वानों के समक्ष यह कह दिया-"नारद ! मेरा पक्ष सत्य है। यदि मेरी बात मिथ्या साबित हो जाय तो विद्वानों के समभ मेरी जिह्वा काट डाली जाय अन्यथा तुम्हारी जिह्वा काट ली जाय ।" १ कयाई च महाजणमझे पव्वयमो 'रायपूजिनो महं' ति गविभो पण्णवेति-अजा छगला तेहिं य जइयग्वं ति। [वसुदेव हिण्डी, प्रथम खं.. पृ० १९०-१९१] २ ततो तेसि समच्छरे विवादे वट्टमाणे पव्वयमो भणतिजा महं वितहवादी ततो मे जिहवेदो विउसाणं पुरमो, तव वा । [वसुदेव हिण्डी प्र. लं. पृ० १९१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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