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________________ उपरिचर वसु] भगव अरिष्टनेमि ३१६ क्षीरकदम्बक ने किसी तरह यह बात सुनली मोर मन में विचार किया कि वसु तो राजा बनेगा पर नारद और पर्वत, इन दोनों में से नरक में कौन जायगा, इसका निर्णय करना आवश्यक है। अपने पुत्र पर्वत और नारद की परीक्षा करने के लिये उपाध्याय ने एक कृत्रिम बकरा बनाया और उसमें लाक्षारस भर दिया । उपाध्याय द्वारा निर्मित वह बकरा वस्तुतः सजीव बकरे के समान प्रतीत होता था। उपाध्याय ने नारद को बलाकर कहा-"वत्स ! मैंने इस बकरे को मन्त्र-बल से स्तंभित कर दिया है । आज बहला अष्टमी है अतः संध्या के समय, जहां कोई नहीं देखता हो, ऐसे स्थान पर इसे मार कर शीघ्र लौट आना।" । अपने गुरु के आदेशानुसार नारद संध्या के समय उस बकरे को लेकर निर्जन स्थान में गया और विचार किया कि यहाँ तो तारे और नक्षत्र देख रहे हैं । वह और भी घने जंगल के अन्दर चला गया और वहां पर भी उसने सोचा कि यहां पर भी वनस्पतियाँ देख रही हैं जो कि सचेतन हैं । उस घने जंगल के उस निर्जन स्थान से भी नारद बकरे को लिये हए आगे बढ़ा और एक देवस्थान में पहुंचा। पर वहाँ पर भी उसने मन में विचार किया कि वहां पर भी देव देख रहे हैं। नारद असमंजस में पड़ गया। उसके मन में विचार प्राया-"गरुआज्ञा यह है कि जहां कोई नहीं देखता हो, उस स्थान पर इसका वध करना । पर ऐसा तो कहीं कोई भी स्थान नहीं है, जहां कि कोई न कोई नहीं देखता हो । ऐसी दशा में यह बकरा निश्चित रूप से अवध्य है।" अन्ततोगत्वा नारद उस बकरे को बिना मारे ही गुरु के पास लौट आया और उसने गुरु के समक्ष अपने सारे विचार प्रस्तुत किये। गुरु ने साधुवाद के साथ कहा--"नारद ! तुमने बिल्कुल ठीक तरह से सोचा है । तुम जानो, इस सम्बन्ध में किसी से कुछ न कहना।'' १ (क) वसुदेव हिण्डी, पृष्ठ १६० (ख) प्राचार्य हेमचन्द्र ने उपाध्याय द्वारा तीनों शिष्यों को पृथक्-पृथक् एक-एक कृत्रिम कुक्कुट देने का उल्लेख किया है । यथा :---- समयं गुरुरस्माकमेकैक पिष्टकुक्कुटम् । उवा चामी तत्र वध्या, यत्र कोऽपि न पश्यति ।। त्रिषष्टि श पु. च., पर्व ७, मगं २, ला० ३६१ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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