________________
३१२
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[चक्रवर्ती जयसेन
ने १६०० वर्ष तक चक्रवर्ती सम्राट के पद पर रहते हुए सम्पूर्ण भरतक्षेत्र पर शासन किया । चक्रवर्ती जयसेन ने २६०० वर्ष की अवस्था में षट्खण्ड के विशाल साम्राज्य, ९ निधियां और सम्पूर्ण ऐहिक प्रपंचों का परित्याग कर श्रमणधर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली। ४०० वर्ष के अपने संयमी साधु-जीवन में विशुद्ध श्रमणाचार का पालन और घोर तपश्चरण करते हुए उन्होंने पाठों को को मूलतः विनष्ट कर ३००० वर्ष की आयु पूर्ण होने पर, जहां जाने के पश्चात् संसार में कभी लौटना नहीं पड़ता, उस अनन्त शाश्वत सुखधाम मोक्ष में गमन किया।
000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org