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________________ धर्म-परिवार ] केवली मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी चौदह पूर्वधारी वैक्रिय. लब्धिधारी वादी साधु साध्वी श्रावक श्राविका भगवान् श्री नमिनाथ - एक हजार छः सौ [१,६००] - एक हजार दो सौ सात [१,२०७] - एक हजार छः सौ [ १,६०० ] -चार सौ पचास [४५० ] -पांच हजार [ ५,००० ] - एक हजार [१,००० ] -बीस हजार [२०,००० ] - इकतालीस हजार [४१,०००] –एक लाख सत्तर हजार [१,७०,००० ] - तीन लाख अड़तालीस हजार [३,४८,००० ] इस प्रकार प्रभु के उपदेशामृत का पान कर लाखों लोगों ने भक्तिपूर्वक सम्यग्दर्शन का पालन कर आत्म-कल्यारण किया । ३०६ परिनिर्वाण नव मास कम ढाई हजार वर्ष तक केवली पर्याय से धर्मोपदेश करते हुए जब प्रभु ने मोक्षकाल समीप समझा तब एक हजार मुनियों के साथ सम्मेत..... शिखर पर जाकर अनशन प्रारम्भ किया । एक मास के अन्त में शुक्ल - ध्यान के अन्तिम चरण में योग निरोध करके वैशाख कृष्णा दशमी को अश्विनी नक्षत्र में सकल कर्मों का क्षय कर प्रभु सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। श्रापकी पूर्ण श्रायु १० हजार वर्ष की थी । मुनिसुव्रत स्वामी के छः लाख वर्ष पश्चात् नमिनाथ मोक्ष पधारे। इनके समय में हरिषेण और शासनकाल में जय नाम के चक्रवर्ती राजा हुए । Jain Education International यहां इतना ध्यान रहे कि तीर्थंकर नमिनाथ और मिथिला के नमि राजर्षि एक नहीं, भिन्न-भिन्न हैं । नाम और नगर की एकरूपता से अधिकांश लेखक दोनों को एक समझ लेते हैं, पर वस्तुतः दोनों एक नहीं हैं । तीर्थंकर 'नमिनाथ' महाराज विजय के पुत्र और स्वयंबुद्ध हैं; जबकि नमिराज सुदर्शनपुर के युवराज युगबाहु के पुत्र और प्रत्येकबुद्ध हैं । नमराज दाह रोग से पीड़ित थे, दाह शान्ति के लिए चन्दन घिसती हुई रानियों के करों में एक-एक चूड़ी देख कर वे प्रतिबोषित हुए। राज्यपद से वे ऋषि बने, प्रत: राजर्षि कहलाये । 000 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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