________________
३००
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[परिनिर्वाण परिनिर्वाण तीस हजार वर्ष की पूर्ण आयु में से प्रभु साढ़े सात हजार वर्ष कुमारावस्था में रहे, पन्द्रह हजार वर्ष तक राज्य-पद पर रहे मौसाढ़े सात हजार वर्ष तक उन्होंने संयम-धर्म की आराधना की।
अन्त में केवलज्ञान से जीवन का अन्तिम काल निकट जानकर प्रभ ने एक हजार मुनियों के साथ एक मास का निर्जल अनशन किया और ज्येष्ठ कृष्णा नवमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में सकल कर्मों का क्षय कर वे सिख, बुद्ध एवं मुक्त हुए।
जैन इतिहास और पुराणों के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम राम, जिनका अपर नाम पद्म बलदेव है और वासुदेव लक्ष्मण भी भगवान् मुनिसुव्रत के शासनकाल में हुए । राम ने उत्कृष्ट साधना से सिद्धि प्राप्त की और सीता का जीव बारहवें स्वर्ग का अधिकारी हुमा । इनका पवित्र चरित्र "पउमरियं" एवं पपपुराण आदि ग्रन्थों में विस्तार से उपलब्ध होता है।
000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org