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________________ चक्रवर्ती महापद्म प्रवर्तमान प्रवसर्पिणी काल में इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, बीसवें तीर्थकर भ० मुनिसुव्रत स्वामी की विद्यमानता में नौवें चक्रवर्ती महापद्य हुए। चक्रवर्ती महापद्य के ज्येष्ठ प्राता का नाम विष्णु कुमार था । प्राचीन काल में भरतक्षेत्र के मार्यावर्त खण्ड में हस्तिनापुर नामक एक सुसमृद्ध एवं सुन्दर नगर था। वहां भगवान् ऋषभदेव की वंश परम्परा में पयोतर नामक एक महाप्रतापी राजा न्याय-नीतिपूर्वक अपने राज्य की प्रजा का पालन करते थे। उनकी पट्टमहिषी का नाम ज्वाला था । एक रात्रि में सुप्रसुप्ता महारानी ज्वाला ने स्वप्न में देखा कि एक केसरीसिंह उसके मुख में प्रविष्ट हो गया है। दूसरे दिन प्रातःकाल राजा पपोत्तर ने स्वप्न पाठकों को बुला कर उनसे महादेवी के उक्त स्वप्न के फल के सम्बन्ध में प्रश्न किया। स्वप्न पाठकों ने स्वप्नशास्त्र के माधार पर महाराज को बताया कि अक्षय कीति का उपार्जन करने वाला एक महान् पुण्यशाली प्राणी महारानी की कुक्षि में पाया है। गर्भकाल पूर्ण होने पर महारानी ज्वाला देवी ने एक प्रतीव सुन्दर, सुकुमाल एवं तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया। माता-पिता ने अपने पुत्र का नाम विष्णुकुमार रखा। कालान्तर में महारानी ज्वालादेवी ने एक रात्रि में चौदह महास्वप्न देखे । स्वप्नफल सम्बन्धी राजा-रानी की जिज्ञासा को शान्त करते हुए नैमित्तिकों ने बताया कि महारानी की कुक्षि से एक महान् पराक्रमी पुत्ररत्न का जन्म होगा, जो समय पर सम्पूर्ण भरतक्षेत्र का चक्रवर्ती सम्राट बनेगा। गर्भकाल पूर्ण होने पर महारानी ज्वालादेवी ने सर्व शुभ लक्षण सम्पन्न एक महान तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया। माता-पिता ने स्वजन-परिजनों के साथ विचार-विमर्श कर अपने उस दूसरे पुत्र का नाम महापम रखा। विष्णुकुमार और महाप-ये दोनों भाई शुक्लपक्ष की द्वितीया के चन्द्र के समान अनुक्रमशः वृद्धिगत होते हुए शैशवावस्था को पार कर किशोर वय में और किशोर वय से युवावस्था में प्रविष्ट हुए। दोनों राजकुमारों को उस समय के लोकविश्रत बड़े-बड़े शिक्षा शास्त्रियों एवं कलाविदों के सानिध्य में रख कर उन्हें राजकुमारोचित सभी विद्यामों एवं कलाओं का अध्ययन कराया गया। सुतीक्ष्ण बुद्धि दोनों भ्राता सभी प्रकार की विद्याओं में पारंगत हो गये । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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