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दीक्षा और पारणा ]
भ० श्री मुनिसुव्रत
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मुनिसुव्रत ने पिता के पीछे राज्य संभाला पर राजकीय वैभव और इन्द्रयों में लिप्त नहीं हुए ।
सुख
के
दीक्षा प्रौर पारणा
पन्द्रह हजार वर्षों तक राज्य का भलीभांति संचालन करने के पश्चात् प्रभु मुनिसुव्रत ने लोकान्तिक देवों की प्रार्थना से वर्षीदान किया एवं अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य पर अभिषिक्त कर फाल्गुन कृष्णा अष्टमी के दिन श्रवण नक्षत्र में एक हजार राजकुमारों के साथ दीक्षा ग्रहरण की ।
दूसरे दिन राजगृही में ब्रह्मदत्त राजा के यहां प्रभु के बेले का प्रथम पारणा सम्पन्न हुआ । देवों ने पंच- दिव्य बरसा कर दान की महिमा प्रकट की ।
केवलज्ञान
ग्यारह मास तक छद्मस्थ रूप से विचरण कर फिर प्रभु दीक्षा वाले उद्यान में पधारे और वहां चम्पा वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हो गये । फाल्गुन कृष्णा द्वादशी के दिन क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ होकर उन्होंने घाति-कर्मों का सर्वथा क्षय किया और लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान व केवलदर्शन की प्राप्ति की ।
hair बनकर प्रभु ने श्रुतधर्म एवं चारित्र-धर्म की देशना दी और हजारों व्यक्तियों को चारित्र धर्म की दीक्षा देकर चतुविध संघ की स्थापना की ।
धर्म-परिवार
भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी के धर्म संघ में निम्न परिवार था :
गरण एवं गणधर - अठारह [१८] गण एवं अठारह [१८] ही गणधर केवली. - एक हजार आठ सौ [१,८०० ]
मनः पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी चौदह पूर्वधारी
- एक हजार पांच सौ - एक हजार आठ सौ -पांच सौ [५००]
[१,५०० ] [१,८०० ]
वैक्रिय लब्धिधारी -दो हजार [२,००० ]
वादी
साधु
साध्वी
श्रावक
श्राविका
- एक हजार दो सौ [१,२००] - तीस हजार [ ३०,००० ] - पचास हजार [५०,००० ]
- एक लाख बहत्तर हजार [१,७२,००० ] -तीन लाख पचास हजार [ ३,५०,००० ]
१ स० द्वा है में फाल्गुन शुक्ला १२ उल्लिखित है ।
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