________________
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
स्थान पर रुके त्वरित गति से लक्ष्यस्थल की ओर बढ़ते हुए वे एक दिन मिथिलाधिपति के राजप्रासाद में पहुंचे । उन्होंने मिथिलेश्वर से कहा - "राजन् ! तुम्हारी १०० पुत्रियों में से एक राजकन्या मुझे दो ।"
२६२
1
यह महातपस्वी कहीं रुष्ट हो मेरा घोर अनिष्ट न कर दे - इस डर से राजा ने तत्काल तापस की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए कहा - "भगवन् मेरी १०० पुत्रियों में से जिसे आप चाहें, उसे ही ले लें । जमदग्नि ने सौ राजपुत्रियों में से रेणुका नाम की राजपुत्री को अपनी भार्या बनाने के लिये चुना । राजा ने जमदग्नि के साथ अपनी पुत्री रेणुका का विवाह कर दिया । जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ अपने तपोवन में लौट आये ।
रेणुका की एक बहिन का नाम तारा था । मिथिलेश ने अपनी उस तारा नाम की राजकुमारी का विवाह हस्तिनापुर के कौरववंशी महाराजा कार्तवीर्य सहस्रार्जुन के साथ किया। जहां एक बहिन रेणुका ऋषि पत्नी बनी, वहां दूसरी प्रोर दूसरी बहिन तारा महाराजरानी बनी ।
रेणुका ने एक पुत्र को जन्म दिया। जमदग्नि ने कुलपति परम्परा से क्रमागत अपना परशु अपने उस पुत्र को दिया । और उसका नाम परशुराम.
रखा ।
कालान्तर में रेणुका अपनी बहिन तारा के यहां हस्तिनापुर के राज प्रासाद में अतिथि बन कर गई। महारानी तारा ने अपनी बहिन रेणुका का बड़े हो राजसी ठाट-बाट से आतिथ्य सत्कार एवं सम्मान किया । हस्तिनापुर के राजप्रासाद में रहते हुए राज्यलक्ष्मी के लोभ, विषय भोगों की मनोज्ञता, अपनी इन्द्रियों के चाञ्चल्य एवं कर्मपरिणति की कल्पनातीत शक्ति के प्रभाव के वशीभूत हो ऋषिपत्नी रेणुका अपने बहनोई ( भगिनीपति) कार्तवीर्य पर आसक्त हो गई और उसके साथ अहर्निश कामभोगों में अनुरक्त रहने लगी । ' तापस जमदग्नि को जब कामदेव के इस प्रपञ्च के सम्बन्ध में ज्ञात हुआ तो 'वह हस्तिनापुर पहुंचा और वहां से रेणुका को अपने आश्रम में ले आया । जमदग्नि ने अपने पुत्र परशुराम को उसकी माता की दुश्चरित्रता का वृत्तान्त सुनाया तो परशुराम ने अपनी माता का शिर काट गिराया | 3
रेणुका की हत्या का वृत्तान्त सुनकर कार्तवीर्य सहस्रार्जुन अपने दल-बल. क साथ जमदग्नि के आश्रम में पहुँचा और परशुराम को वहां न पा उसने जमदग्नि तापस को मार डाला ।
१ चउप्पन्न महापुरिसचरियं, पृ० १६५ २ वही ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org