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________________ सुभूम चक्रवर्ती प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल में इस भरतक्षेत्र का आठवां चक्रवर्ती सम्राट् सुभूम अठारहवें तीर्थंकर एवं सातवें चक्रवर्ती भ० अरनाथ तथा उन्नीसवें तीर्थंकर भ० मल्लिनाथ के अन्तराल काल में हुआ । सुभूम हस्तिनापुर के पुराण प्रसिद्ध महाशक्तिशाली राजा कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का पुत्र था । उसकी माता का नाम तारा था । ' चक्रवर्ती सुभूम का जो जीवनवृत्त प्राचार्य शीलांक द्वारा रचित 'चउप्पन्न महापुरिस चरियं' में उल्लिखित है, उसका सारांश इस प्रकार है : --- " इसी जम्बूद्वीप के भरतखण्ड में हस्तिनापुर नामक नगर था । उस नगर के पार्श्व के एक सघन, विशाल वन के मध्यभाग में तापसों का एक आश्रम था । उस आश्रम के कुलपति का नाम जम अथवा यम था । एक मातृ-पितृ विहीन कोई ब्राह्मण बालक किसी सार्थवाह के साथ जाता हुआ अपने सार्थ से बिछुड़ गया और इधर-उधर घूमता हुआ अन्ततोगत्वा एक दिन उस तापस श्राश्रम में पहुंचा । जम कुलपति ने उस ब्राह्मण बालक को श्राश्वासन दे अपने पास रखा । कुलपति के पास रहते रहते उस बालक को कालान्तर में सांसारिक प्रपञ्चों से वैराग्य हो गया और उसने जम कुलपति के पास संन्यास धर्म की प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । संन्यस्त होने पर उस नवप्रव्रजित ब्राह्मण कुमार का नाम श्रग्नि रखा गया। गुरु के नाम के साथ अपने नाम का उच्चारण करते रहने के कारण वह अभिनव तापस 'जमदग्नि' (जमयग्गि) के नाम से प्रसिद्ध हो गया । वह घोर तपश्चरण करने लगा और शीघ्र ही महातपस्वी के रूप में उसकी गणना की जाने लगी । जिस समय घोर तपश्चरण में निरत जमदग्नि ऋषि की महातपस्वी के रूप से ख्याति दिग्दिगन्त में व्याप्त हो गई थी, उस समय दो देवों ने सम्यक्त्वधर्म अर्थात् श्रावकधर्म और तापसधर्म की परीक्षा करने का निश्चय किया । उन दो देवों में से एक देव श्रावकधर्म का भक्त था और दूसरा देव तापसधर्म का । श्रावकधर्म के उपासक देव ने तापसधर्म के उपासक देव से कहा - " मित्र ! तपश्चर्या की दृष्टि से तुम्हारे धर्म में जो सर्वोत्कृष्ट तापस हो, उसकी परीक्षा की जाय ।" तापसोपासक देव ने कहा- "तथास्तु ! जमदग्नि तापस जो इस समय १ समवायांगसूत्र, सूत्र २०३ - २०४, पृ० १०८५ १०८७ (घासीलाल जी म० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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