________________
परिनिर्वाण]
भ० श्री मल्लिनाथ
२८९
५५ हजार वर्ष तक देश के विभिन्न क्षेत्रों में केवलीपर्याय से सुखपूर्वक विचरते रहने के पश्चात् भगवान् मल्लिनाथ समेत पर्वत के शिखर पर पधारे । वहां प्रभु ने अपनी प्राभ्यन्तर परिषद् की ५०० साध्वियों और बहिरंग परिषद् के ५०० साधुओं के साथ पादपोपगमन संथारा कर एक मास का, पानी रहित अनशन का प्रत्याख्यान किया । अपनी दोनों विशाल भुजाओं को फैलाये हुए शान्त-निश्चल भाव से प्रभु ने शेष चार घातिकर्मों को नष्ट किया और अपनी ५५ हजार वर्ष की प्रायु पूर्ण कर चैत्र शुक्ला चौथ की अर्द्ध रात्रि के समय भरणी नक्षत्र का चन्द्र के साथ योग होने पर एक महीने का अनशन पूर्ण कर ५०० साध्वियों और ५०० साधनों के साथ निर्वाण प्राप्त किया। भगवान् ऋषभदेव के निर्वाण महोत्सव का जम्बद्वीप प्रज्ञप्ति में जिस प्रकार का वर्णन है, उसी प्रकार देवों, देवेन्द्रों और नर-नरेन्द्रों ने भगवान मल्लिनाथ और उनके साथ मुक्त हए साधनों एवं साध्वियों के पार्थिव शरीर का अन्तिम संस्कार कर प्रभु का निर्वाण महोत्सव मनाया।
000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org