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________________ २८८ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [परिनिर्वाण मनःपर्यवज्ञानी - पाठ सौ (८००) अवधिज्ञानी - दो हजार (२,०००) चौदह पूर्वधारी - छह सौ (६००) वैक्रिय लब्धिधारी - तीन हजार पाँच सौ (३,५००) वादी - एक हजार चार सौ (१,४००) साधु - चालीस हजार (४०,०००) अनुत्तरोपपातिक मुनि - दो हजार (२,०००) साध्वी - पचपन हजार (५५,०००) श्रावक - एक लाख चौरासी हजार (१,८४,०००) श्राविका - तीन लाख पैंसठ हजार (३,६५,०००) भगवान् मल्लिनाथ की अन्त कृभूमि--- अर्थात् उनके तीर्थ में उसी भव से मोक्ष जाने वालों की कालावधि, दो प्रकार को थी । एक तो यगान्तकृदभमि और दूसरी पर्यायान्तकृद्भमि । युगान्तकृभूमि में भगवान मल्लिनाथ के निर्वाग से लेकर उनके २०वें पट्टधर प्राचार्य के समय तक उसी भव में मोक्ष जाने वाले साधक अर्थात साध, साध्वी अपने पाठों कों का अन्त कर मोक्ष जाते रहे। यह उनको युगान्तकृभूमि थी। भगवान् मल्लिनाथ के बीसवें पट्टधर के समय के पश्चात प्रभु के धर्मतीर्थ में कोई साधक मोक्ष नहीं गया। उनके तीर्थ में मोक्ष जाने का क्रम प्रभु के २०वें पट्टधर के समय तक ही चलता रहा । उसके पश्चात उनके तीर्थ में कोई मोक्ष नहीं गया। दूसरी उनकी अन्तकभूमि पर्यायान्तकृदभमि थी। प्रभ मल्लिनाथ की पर्यायान्तकृत भमि अर्थात उनकी केवली पर्याय में उसी भव में मोक्ष जाने वालों का काल प्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न होने के दो वर्ष पश्चात प्रारम्भ होकर उनके निर्वाण प्राप्त करने के समय तक चलता रहा । तात्पर्य यह है कि भगवान् मल्लिनाथ के धर्म तीर्थ में, प्रभ को केवलज्ञान प्राप्त होने के दो वर्ष पश्चात् मोक्ष जाने वालों का क्रम प्रारम्भ हुआ। उससे पहले उनके तीर्थ में कोई मुक्त नहीं हुआ । प्रभु को केवलज्ञान की उत्पत्ति के दो वर्ष पश्चात् से लेकर उनके निर्वाण काल तक उनके तीर्थ में साधकों का मुक्ति में जाने का क्रम चलता रहा, वह ५४८६८ वर्ष का काल भगवान् मल्लिनाथ की पर्यायान्तकृत भूमि थी। उनके निर्वाण के पश्चात् उनके शिष्यप्रशिष्यों की बीसवीं पीढ़ी अर्थात् उनके बीसवें पट्टधर के समय तक उनके तीर्थ में जो मुक्त होने का क्रम चलता रहा. वह प्रभु मल्ली की युगान्तकृत भूमि थी। उनके बीसवें पट्टधर के समय के पश्चात् उनके तीर्थ में कोई साधक मुक्त नहीं हुमा। परिनिर्वाण भगवान् मल्लिनाथ १०० वर्ष तक आगारवास में अर्थात अपने ग्रह मेंरहे । ५४,६०० वर्ष तक प्रभु केवली पर्याय में रहे । लगभग १०० वर्ष कम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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