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________________ प्रथमानुयोग धार्मिक इतिहास का प्राचीनतम शास्त्र माना गया है। जैन धर्म के इतिहास में जितने भी ज्ञात, अज्ञात, उपलब्ध तथा अनुपलब्ध ग्रन्थ हैं उनका मूल स्रोत अथवा आधार प्रथमानुयोग ही रहा है। आज श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा के आगम-ग्रन्थों, समवायांग, नन्दी, कल्पसूत्र और आवश्यक निर्युक्ति में जो इतिहास की यत्र-तत्र झांकी मिलती है, वह सब प्रथमानुयोग की ही देन है। कालप्रभावजन्य क्रमिक स्मृति - शैथिल्य के कारण शनैः शनैः चतुर्दश पूर्वों के साथ-साथ इतिहास का अक्षय भण्डार प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग रूप वह शास्त्र आज विलुप्त हो गया। वही हमारा मूलाधार है। इतिहास-लेखन में पूर्वाचार्यों का उपकार प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग के विलुप्त हो जाने के बाद जैन इतिहास को सुरक्षित रखने का श्रेय एकमात्र पूर्वाचार्यों की श्रुतसेवा को है । इस विषय में उन्होंने जो योगदान दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता । आगमाश्रित निर्युक्ति, चूर्ण, भाष्य और टीका आदि ग्रन्थों के माध्यम से उन्होंने जो उपकार किया है, वह आज के इतिहास - गवेषकों के लिए बड़ा ही सहायक सिद्ध हो रहा है । पूर्वाचार्यों ने इस प्रकार ऐतिहासिक सामग्री प्रस्तुत नहीं की होती तो आज हम सर्वथा अन्धकार में रहते अतः वहाँ उन कतिपय ग्रन्थकारों और लेखकों का कृतज्ञतावश स्मरण करना आवश्यक समझते हैं। (9) (२) (३) (४) (५) (६) उनमें सर्वप्रथम आचार्य भद्रबाहु हैं, जिन्होंने दशवैकालिक आवश्यक आदि १० सूत्रों पर नियुक्ति की रचना की। आपका रचनाकाल वीर नि. संवत् १००० के आसपास का है। जिनदास गणी महत्तर — आपने आवश्यक चूर्णि आदि ग्रंथों की रचना की। आपका रचनाकाल ई. सन् ६००-६५० है । अगस्त्य सिंह ने दशवैकालिक सूत्र पर चूर्णि की रचना की। आपका रचनाकाल विक्रम की तीसरी शताब्दी (वल्लभी - वाचना से २००-३०० वर्ष • पूर्व का) है । ५ संघदास गणी ने वृहत्कल्प भाष्य और वसुदेव हिण्डी की रचना की। आपका रचनाकाल ई. सन् ६०९ है । जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यक भाष्य की रचना की। आपका रचनाकाल विक्रम सं. ६४५ है । विमळ सूरि ने पउमचरियं आदि इतिहास ग्रन्थों की रचना की। आपका रचनाकाल विक्रम संवत् ६० है । ( १३ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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