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केवलज्ञान] भ० श्री मल्लिनाथ
२८५ तत्पश्चात् अर्हत मल्ली ने "णमोत्थु णं सिद्धाणं' अर्थात् सिद्धों को नमस्कार हो-'इस उच्चारण के साथ सिद्धों को नमस्कार कर सामायिक चारित्र को धारण किया। जिस समय भगवान् मल्ली ने सामायिक चारित्र को अंगी. कार किया, उस समय शक की प्राज्ञानसार देवों तथा मनष्यों द्वारा किये जा रहे जय घोषों एवं विविध वाद्य यन्त्रों और गीतों की ध्वनियों को बन्द कर दिया गया। सामायिक चारित्र को अंगीकार करते ही भगवान् मल्ली को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न हो गया और प्रभु चार ज्ञान के धारक हो गये ।
जिस समय प्रहंत मल्ली ने सामायिक चारित्र अंगीकार किया, उस समय पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन का पूर्वाह्न काल था।' प्रभु उस समय अष्टम भक्त की तपस्या किये हुए थे। उस समय अश्विनी नक्षत्र का चन्द्र के साथ योग था।
भगवान् मल्ली के साथ उनकी प्राभ्यन्तर परिषद् की तीन सौ महिलाओं और बाह्य परिषद् के तीन सौ पुरुषों ने मडित होकर प्रव्रज्या ग्रहण की। अर्हत् मल्ली के साथ नंद, नंदिमित्र, सुमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, अमरपति, • अमरसेन और महासेन नामक आठ राजकुमारों ने भी दीक्षा ग्रहण की।
चार प्रकार के देवों ने भगवान मल्ली के अभिनिष्क्रमण की खूब महिमा की और नन्दीश्वर नामक आठवें द्वीप में जाकर उन्होंने अष्टाह्निक महोत्सव किया । तदनन्तर वे चारों जाति के देव अपने अपने स्थान को लौट गये ।
ज्ञान
भगवान् मल्ली ने जिस दिन प्रव्रज्या ग्रहण की थी, उसी दिन, उस दिवस के पश्चिम प्रहर में जब वे अशोक वृक्ष के नीचे शिलापट्ट पर सुखासन से ध्यानावस्थित थे, उस समय प्रभ मल्ली ने शूभ परिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय और विशुद्ध लेश्याओं के द्वारा घनघातिक कर्मों के सम्पूर्ण प्रावरणों को क्षय करने वाले अपूर्वकरण में प्रवेश किया और उन्होंने अल्प समय में ही अष्टम, नवम, दशम और बारहवें गुरणस्थान को पार कर पौष शुक्ला एकादशी को ही दिन के पश्चिम प्रहर में अनन्त केवलज्ञान और केवल दर्शन को प्रकट कर लिया। वे सम्पूर्ण संसार के सचराचर द्रव्यों, द्रव्यों के पर्यायों और समस्त भावों को साक्षात् युगपद् जानने और देखने लगे।
इस ऋषभादि महावीरान्त चौबीसी के अन्य तीर्थंकरों की अपेक्षा प्रभ मल्लिनाथ की यह विशिष्टता रही कि आपने जिस दिन प्रव्रज्या ग्रहण की, उसी दिन आपको केवलज्ञान-केवलदर्शन प्रकट हो गये। आपका छद्मस्थंकाल अन्य तेवीस तीर्थकरों से सर्वाधिक कम अर्थात् एक प्रहर से कुछ अधिक अथवा १ सत्तरिसय द्वार आदि में मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को दीक्षा दिन लिखा है ।
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