________________
२८४
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[अभिनिष्क्रमण
रहा था उस समय देव नगर के अन्दर और बाहर चारों ओर हर्षातिरेक से दिव्य कुतूहल कर रहे थे । अभिषेक के अनन्तर महाराज कुम्भ ने भगवान् मल्ली को पुन: सिंहासन पर पूर्वाभिमुख बैठाकर उन्हें समस्त अलंकारों से अलंकृत किया और अपने कौटुम्बिक पुरुषों को मनोरमा नाम की शिबिका उपस्थित करने को कहा । देवराज शक्र ने भी आभियोगिक देवों को सैकड़ों स्तम्भों वाली प्रति सुरम्य शिबिका लाने का आदेश दिया। आभियोगिक देवों ने शक की आज्ञा के अनुरूप एक दिव्य शिबिका वहां ला उपस्थित की। शक द्वारा मंगवाई गई दिव्य शिबिका अपने दिव्य प्रभाव से कुम्भ राजा द्वारा मंगाई गई शिबिका से मिल गई।
अभिनिष्क्रमण एवं दीक्षा तदनन्तर भगवान मल्ली अभिषेक सिंहासन से उठकर शिबिका के पास आये और उसे अपने दक्षिण पार्श्व की ओर कर उस पर प्रारूढ़ हो उसमें रखे उच्च सिंहासन पर पूर्वाभिमुख हो विराज गये ।
तदनन्तर सद्यस्नात अठारह श्रेणियों और प्रश्रेरिणयों के जनों तथा अठारह प्रकार के अवान्तर जातीय पालकी. उठाने वाले पुरुषों ने महाराज कुम्भ की आज्ञानुसार सुन्दर वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो उस मनोरमा नाम की पालकी को अपने स्कन्धों पर उठा लिया। देवराज शक्र ने उस मनोरमा शिबिका के दक्षिण दिशावर्ती ऊपर के डण्डे को पकड़ा। ईशानेन्द्र ने उत्तर की दिशा वाले ऊपर के डण्डे को पकड़ा। चमरेन्द्र ने दक्षिण दिशा वाले नीचे के डण्डे को और बलीन्द्र ने उत्तरदिग्विभागवर्ती नीचे के डण्डे को पकड़ा । अवशिष्ट भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक इन्द्रों ने अपनी अपनी योग्यतानुसार उस शिबिका का परिवहन किया । हर्षातिरेक से रोमांचित हुए मनुष्यों ने सर्व प्रथम उस शिबिका को अपने कन्धों पर उठाया। उनके पश्चात देवेन्द्रों, असुरेन्द्रों और नागेन्द्रों ने उस शिबिका को अपने कन्धों पर उठाया। भगवान् मल्ली की पालकी के सबसे आगे स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, वर्द्धमान, भद्रासन, कलश, मत्स्ययुग्म और दर्पण ये अष्ट मंगल चल रहे थे। मिथिला नगरी के मध्यवर्ती राजमार्ग से होती हुई भगवान् मल्लिनाथ के महाभिनिष्क्रमण की शोभायात्रा सहस्राम्र वन नामक उद्यान में पहुंची । उस उद्यान में भगवान् की पालकी जब अशोकवृक्ष के नीचे पहुंची तब पालकी को मनुष्यों और देवेन्द्रों
आदि ने अपने कन्धों से नीचे उतारा। तदनन्तर अर्हत मल्ली उस मनोरमा शिबिका से नीचे उतरे। उन्होंने अपने प्राभरणालंकारों को स्वतः ही उतारा, जिन्हें महारानी प्रभावती ने अपने वस्त्रांचल में रख लिया। तदनन्तर प्रभु मल्ली ने अपने केशों का पंचमुष्टि लुचन किया। उन केशों को शक ने अपने वस्त्र में रख कर क्षीर समुद्र में प्रक्षिप्त कर दिया।
Jain Education International
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only