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________________ २८० जैन धर्म का मौलिक इतिहास [छहों राजामों के देवभव की प्रायु ३२ सागर से कुछ कम थी, अत: तुम छहों मुझ से पूर्व ही जयन्त विमान से च्यवन कर अपने इस वर्तमान भव में इन छह जनपदों के अधिपति बने हो । मेरी जयन्त विमान के देवभव की आयु पूरे बत्तीस सागर की थी । अत: मैंने तुम छहों के पश्चात् जयन्त विमान से च्यवन कर विदेह जनपद के महाराजा कुम्भ की महारानी प्रभावती देवी की कुक्षि में गर्भ रूप से उत्पन्न हो गर्भकाल समाप्त होने पर कन्या के रूप में जन्म ग्रहण किया है। हे राजाप्रो! क्या आप लोग अपने इस भव से पूर्व के भव को भूल गये हो, जिसमें कि हम सातों ही जयन्त नामक अनत्तर विमान में कुछ कम बत्तीस सागर जैसी सुदीर्घावधि तक साथ-साथ देव बन कर रहे हैं। वहां हम सातों ने प्रतिज्ञा की थी कि हम देवलोक से च्यवन करने के पश्चात् परस्पर एक दूसरे को प्रतिबोधित करेंगे। आप लोग अपने उस देव भव को स्मरण करो।"१ छहों राजामों को जातिस्मरण भगवती मल्ली के मुखारविन्द से अपने दो पूर्वभवों का विवरण सुनकर वे छहों राजा विचारमग्न हो गये। विचार करते करते शुभ परिणामों, प्रशस्त अध्यवसायों, लेश्याओं की विशुद्धि एवं ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के क्षयोपशम से ईहा, अपोह, मार्गण, गवेषण करने से उन छहों राजाओं को संज्ञि जातिस्मरणज्ञान हो गया। जितशत्रु आदि छहों राजाओं को जातिस्मरण ज्ञान होते ही मल्ली भगवती को विदित हो गया कि इन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो गया है। मल्ली भगवती ने तत्काल गर्भग्रहों के द्वारों को खुलवा दिया। द्वार खलते ही जितशत्र आदि छहों राजा भगवती मल्ली के पास आये और पूर्वभवों के वे सात मित्र एक स्थान पर सम्मिलित हो गये। तदनन्तर भगवतो मल्ली ने उन छहों राजाओं को सम्बोधित करते हुए कहा- "देवानुप्रियो ! मैं तो संसार के भवभ्रमण रूपी भय से उद्विग्न हूं, अतः प्रवजित होऊंगी। अब आप लोगों का क्या विचार है, क्या करना चाहते हैं, आप लोगों का हृदय कितना सशक्त-कितना समर्थ है ?" भगवती मल्ली का प्रश्न सुनकर उन जित शत्रु आदि छहों राजाओं ने उनसे निवेदन किया- "हे देवानुप्रिये ! जब आप प्रवजित हो रही हैं, तो फिर १ कि य तयं पम्हट्ट, जंथ तया भो जयंत पवरंमि । दुत्था समयं निबद्ध, देवा ! तं संभरह जाइ ।।सू० ३५ ।। --ज्ञाताधर्मकथा सूत्र प्र०८-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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