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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [जितशत्रु प्रादि पृथक-पृथक् दूत भेजकर रात्रि के समय नगर में एक-एक को प्रवेश करवा कर पृथक्-पृथक् गर्भगृहों में ठहरा दिया ।
सूर्योदय होते ही मोहन घर के गर्भगृहों के वातायनों में से जितशत्रु आदि उन छहों राजाओं ने भगवती मल्ली द्वारा निर्मित साक्षात मल्ली कूमारी के समान अनुपम सुन्दरी, रूप, लावण्य यौवन सम्पन्ना भगवती मल्ली की प्रतिकृतिप्रतिमा को मणिपीठ पर देखा। मल्ली भगवती की उस प्रतिकृति को देखते ही "अरे, यह तो विदेह राजवर कन्या मल्ली कुमारी है"-मन ही मन यह कहते हुए वे सब उसके रूप-लावण्य पर पूर्णत: मुग्ध, लुब्ध और प्रासक्त हो निनिमेष दृष्टि से आँखें विस्फारित कर देखते ही रह गये। उसी समय भगवती मल्ली वस्त्रालंकारों से विभूषित हो कुब्जा आदि अनेक दासियों के साथ जालघर में अपनी कनकमयी प्रतिकृति के पास आई। उसने पुतली के शिर पर रखे पद्म कमल के ढक्कन को उठा लिया। प्रतिमा पुतली के शिर से ढक्कन के उठाते ही उसमें से ऐसी असह्य और भीषण दुर्गन्ध निकली जैसी कि मत सर्प, गोह और श्वान के सड़े हुए शरीर में से निकलती है । वह भीषण दुस्सह्य दुर्गन्धं तत्क्षरण समस्त वायुमण्डल में व्याप्त हो गई। उस घोर दुस्सह्य, दुर्गन्ध के निकलते ही जितशत्रु प्रादि उन छहों राजाओं ने अपने-अपने उत्तरीय के अंचल से अपनीअपनी नाक को ढंक लिया और दूसरी ओर मुख मोड़कर बैठ गये।
उन छहों राजाओं को इस प्रकार की अवस्था में देखकर भगवती मल्ली ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा-“हे देवानुप्रियो! आप लोग अपने-अपने उत्तरीय से अपनी नाक ढांप कर और पुतली को ओर से मुख मोड़कर क्यों बैठ गये हो?"
मल्ली भगवती का यह प्रश्न सुनकर उन छहों राजाओं ने कहा-"हे देवानुप्रिये ! हम लोगों को यह अशुभ दुस्सह्य दुर्गन्ध किसी भी तरह किंचिन्मात्र भी सहन नहीं हो रही है । इसी कारण हम उत्तरीय से नाक ढंक कर और मुख मोड़कर बैठ गये हैं।"
इस पर भगवती मल्ली ने कहा-'हे देवानप्रियो! इस कनकमयी प्रतली में प्रति स्वादिष्ट एवं मनोज्ञ प्रशन, पान, खाद्य एवं स्वाद्य इन चार प्रकार के प्राहार का एक-एक ग्रास डाला जाता रहा है । मेरी इस कनक निर्मिता प्रतिकृति स्वरूपा पुतली में डाला गया मनोज्ञ प्रशन, पानादि का एक एक ग्रास का पुद्गलपरिणमन इस प्रकार का अमनोज्ञ, तन, मन और मस्तिष्क में इस प्रकार की विकृति का उत्पादक एवं नितान्त असह्य, घोर अशुभ, दुस्सह्य व दुर्गन्धपूर्ण बन गया तो वीर्य एवं रज से निर्मित श्लेष्म, लार, मल, मूत्र, मज्जा, शोणित मादि अशुचियों के भण्डार, नाड़ियों के जाल से प्राबद्ध, प्रान्त्रजाल के कोष्ठा
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