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________________ जितशत्रु का अनुराग] भ० श्री मल्लिनाथ २७५ प्रासाद के प्रपद्वार (पष्ठ भाग के छोटे द्वार) से बाहर निकलवा दिया। इस प्रकार राजप्रासाद से निकलवा दिये जाने पर वे छहों दूत तत्काल अपने-अपने अनुचरों एवं सैनिकों के साथ मिथिला से अपने-अपने नगर की ओर प्रस्थित हुए। अपने-अपने नगर में पहुंच कर वे दूत अपने-अपने राजा की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने अपने-अपने स्वामी राजा को हाथ जोड़ कर सिर झुकाते हुए निवेदन किया-"हम छहों राजाओं के छहों ही दूत एक साथ मिथिला में और मिथिलापति महाराज कुम्भ की राज्यसभा में पहुंचे थे। हम छहों दूतों ने अपने-अपने स्वामी का वक्तव्य-सन्देश महाराज कुम्भ को सुनाया। महाराज कुम्भ सुनते ही क्रोध से तिलमिला उठे । उन्होंने आक्रोश और आवेशपूर्ण स्पष्ट शब्दों में कहा--"मैं अपनी पुत्री विदेह राजकन्या मल्लिकुमारी तुम लोगों में से किसी के स्वामी को नहीं दूंगा।" यह कह कर महाराजा कुम्भ ने हम छहों दूतों को प्रसत्कारित एवं सम्मानित करते हुए अपद्वार से निकलवा दिया। उन छहों दूतों ने अपने-अपने राजा को निवेदन किया- "स्वामिन् ! मिथिलाधिपति महाराज कुम्भ अपनी कन्या मल्लिकुमारी आपको नहीं देंगे।" . जितशत्रु आदि छहों राजा अपने-अपने दूतों की उक्त बात सुन कर बड़े क्रुद्ध हुए । उन छहों राजाओं ने परस्पर एक दूसरे के पास दूत भेज कर कहलवाया-"हम छहों राजाओं के दूतों को राजा कुम्भ ने एक साथ अपमानित कर अपने राजप्रासाद के अपद्वार से निकलवा दिया । अतः अब हम लोगों के लिए यही श्रेयस्कर है कि महाराजा कुम्भ को पराजित करने के लिए हम छहों मिल कर अपनी सेनाओं के साथ मिथिला पर आक्रमण कर दें।" ___ दूतों के माध्यम से इस प्रकार का परामर्श कर प्रतिबुद्ध आदि छहों राजाओं ने एकमत हो अपनी-अपनी चतुरंगिणी सेना साथ ले मिथिला पर अाक्रमण करने के लिये अपने-अपने नगरों से प्रस्थान किया । एक निश्चित स्थान पर छहों राजा एक-दूसरे से मिले । तदनन्तर उन छहों राजाओं ने अपनी-अपनी सेना के साथ मिथिला की ओर प्रयाण किया। जब मिथिलेश महाराज कुम्भ को अपने गुप्तचरों के माध्यम से ज्ञात हना कि जितशत्र प्रादि छह राजा अपनी-अपनी चतुरंगिणी सेनाओं के साथ मिथिला पर आक्रमण करने के लिये आ रहे हैं तो वे (कम्भ) भी आक्रमणकारी राजानों से अपने जनपद की रक्षा के लिए सुसनद्ध हो शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित चतुरंगिणी सेना के साथ अपने राज्य विदेह जनपद की सीमा पर माक्रामक राजामों के प्राने से पहले ही पहुंच गये । विदेह जनपद की सीमा पर उन्होंने अपनी सेना का सन्निवेश स्थापित किया और युद्ध के लिये कटिबद्ध हो उन राजानों के प्रागमन की प्रतीक्षा करने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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