SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [पांचाल नरेश तदनन्तर समग्र अन्तःपुर को आश्चर्य, व्यामोह और ऊहापोह में निमग्न करती हुई चोक्षा परिव्राजिका अपने गन्तव्य स्थान की ओर प्रस्थित हुई । चोक्षा परिव्राजिका के मुख से भगवती मल्ली के अनुपम रूप-लावण्य का विवरण सुन कर पांचालाधिपति जितशत्रु मल्लिकुमारी पर इतना अधिक अनुरक्त हुआ कि वह अपने समग्र पांचाल राज्य के परण से अर्थात् पांचाल देश का पूरा राज्य दे कर भी मल्लिकुमारी को भार्या के रूप में प्राप्त करने के लिये कृतसंकल्प हो गया। उसने अपने दूत को बुला कर आदेश दिया- "देवानुप्रिय ! तुम शीघ्रातिशीघ्र मिथिला के महाराज कुम्भ के पास जाप्रो । उनसे निवेदन करो कि पांचालपति जितशत्रु आपकी पुत्री विदेह राजकुमारी मल्ली की अपनी भार्या के रूप में आपसे याचना करते हैं। वे समग्र पांचाल प्रदेश का राज्य देकर भी मल्ली राजकुमारी को प्राप्त करने के लिए कृतसंकल्प हैं।" अपने स्वामी का आदेश सुन कर दूत बड़ा प्रसन्न हा । यात्रा के लिये आवश्यक प्रबन्ध करने के पश्चात् वह विपुल पाथेय, सैनिकों और अनुचरों के साथ मिथिला की ओर प्रस्थित हुआ। इस भांति प्रतिबद्ध आदि छहों राजाओं द्वारा भगवती मल्ली की अपनीअपनी भार्या के रूप में महाराज कुम्भ से याचना करने के लिये भेजे गये छहों दूत अपने-अपने नगर से प्रस्थित हो चलते-चलते संयोगवश एक ही साथ मिथिला नगरी पहुंचे । उन छहों दूतों ने मिथिला नगरी के बाहर प्रधान उद्यान में अपने अलग-अलग स्कन्धावार-डेरे डाले । स्नानादि आवश्यक कृत्यों से निवृत्त हो दूतयोग्य परिधान धारण कर वे छहों दूत मिथिला नगरी के मध्य भाग में होते हुए राजप्रासाद में महाराज कुम्भ के पास उपस्थित हुए । उन छहों दूतों ने महाराज कुम्भ को सांजलि शीष झुका प्रणाम करने के पश्चात् क्रमश: अपनेअपने स्वामी नरेश का सन्देश महाराज कुम्भ को सुनाया। दूतों के मुख से प्रतिबद्ध आदि राजाओं का सन्देश सुनते ही महाराज कुम्भ अत्यन्त क्रुद्ध हुए, क्रोध के कारण उनकी दोनों आँखें लाल हो गईं, ललाट पर त्रिवलि उभर आई और भौंहें तन गईं। उन्होंने आवेशपूर्ण स्वर में गर्जते हुए उन दूतों से कहा-"पो दूतो! कह दो अपने-अपने राजाओं से जा कर कि मैं अपनी पुत्री विदेह राजवर कन्या मल्लिकुमारी तुम्हारे राजाओं के लिये नहीं दूंगा।" __ इस प्रकार महाराज कुम्भ ने आक्रोशपूर्ण नकारात्मक उत्तर दे कर बिना किसी प्रकार का सत्कार सम्मान किये उन छहों राजाओं के दूतों को राज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy