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पांचाल नरेश जितशत्रु का अनुराग ] भ० श्री मल्लिनाथ
पांचाल नरेश जितशत्रु का अनुराग :
जिस समय भगवती मल्ली १०० वर्ष से कुछ कम अवस्था की हुई, उस समय पांचाल ( आधुनिक पंजाब) जनपद पर जितशत्रु नामक महाराजा राज्य करता था । उस समय पांचाल जनपद की राजधानी काम्पिल्यपुर नगर में थी । काम्पिल्यपुर बड़ा ही समृद्ध और विशाल नगर था । पांचाल राज्य की राजधानी होने के कारण देश-विदेश के व्यापारी वहां व्यापार करने आते रहते थे । काम्पिल्यपुर में पांचालपति जितशत्रु का विशाल और भव्य राजप्रासाद था । उसके राजप्रासाद में अति सुरम्य और विशाल अन्त: पुर था । राजा जितशत्रु के अन्तःपुर में धारिणी प्रमुख १००० रानियां थीं और वे सभी अनिन्द्य सुन्दरियां थीं ।
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उधर उन्हीं दिनों मिथिला नगरी में चोक्षा नाम की एक परिव्राजिका रहा करती थी । चोक्षा परिव्राजिका ऋग्, यजुः, साम और अथर्व - इन चारों वेदों एवं स्मृति आदि समस्त शास्त्रों की पारंगत विदुषी थी । वह विदुषी परिव्राजिका मिथिला के सभी राज्याधिकारियों, श्रेष्ठियों, सार्थवाहों एवं सभी सम्भ्रान्त परिवारों के नर-नारियों के समक्ष शौच मूलक धर्म, दानधर्म एवं तीर्थाभिषेक आदि का विशद व्याख्यापूर्वक उपदेश एवं अपने आचरण से उन धर्मों का प्रदर्शन भी करती थी । एक दिन वह चोक्षा परिव्राजिका गेरुएं (भगवाँ ) वस्त्र धारण किये हुए हाथ में त्रिदण्ड और कमण्डलु लिये अनेक परिव्राजिकाओं के परिवार से परिवृत्त हो अपने मठ से राजप्रासाद की ओर प्रस्थित हुई । वह मिथिला नगरी के मध्यवर्ती राजपथ से चल कर राजप्रासाद में प्रविष्ट हो भगवती मल्ली के कन्यान्तःपुर में पहुंची । भगवती मल्ली के प्रासाद में अन्य परिव्राजिकाओं ने भूमि को जल से छिड़क कर उस पर दर्भ का श्रासन बिछाया । चोक्षा परिव्राजिका उस दर्भासन पर बैठ गई और भगवती मल्ली के समक्ष शौचधर्म, दानधर्म और तीर्थाभिषेक की महत्ता के सम्बन्ध में निरूपण करने लगी। उसकी प्ररूपणा को सुनने के पश्चात् भगवती मल्ली ने चोक्षा परिव्राजिका से प्रश्न किया - " हे चोक्षे ! तुम्हारे यहां धर्म का मूल किसे माना गया है ?"
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मल्ली भगवती के प्रश्न का उत्तर देते हुए चोक्षा परिव्राजिका ने कहा"देवानुप्रिये ! हमारे यहां धर्म को शौचमूलक बताया गया है। इसी कारण जब कभी हमारी कोई भी वस्तु प्रशुचि अपवित्र हो जाती है तो हम उसे मट्टी और पानी से धो कर पवित्र कर लेते हैं । हमारे इस शौचमूलक धर्म के 'अनुसार जल से स्नान करने पर हमारी श्रात्मा पवित्र हो जाती है और हम शीघ्र ही बिना किसी विघ्न अथवा बाधा के स्वर्ग में पहुंच जाते हैं ।"
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