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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [कुणालाधिपति रुप्पी का अनुराग
के पास जा कर उनसे उनकी कन्या मल्लिकुमारी की मेरे लिए मेरी भार्या के रूप में याचना करो । यदि उस राजकुमारी के लिए कन्या-शुल्क के रूप में मुझे अपना सम्पूर्ण राज्य भी देना पड़े तो मैं देने के लिए समुद्यत हूं।"
- अंगपति महाराज चन्द्रच्छाग का आदेश सुन कर दूत बड़ा हृष्ट और तुष्ट हुआ । वह द्रुतगति से अपने घर गया और यात्रा के लिए सैनिक, अनुचर, पाथेय. द्रुतगामी वाहनादि का समुचित प्रबन्ध करने के पश्चात् अनेक सैनिकों के साथ मिथिला की अोर प्रस्थित हो गया।
कुणालाधिपति रुप्पी का अनुराग
करणाला जनपद में भी मल्लिकूमारी के सौन्दर्य की घर-घर चर्चा होने लगी । श्रावस्ती में कुणालाधिपति महाराज रुप्पी का शासन था। उनकी पुत्री, महारानी धारिणी की पात्मजा सुबाहु बड़ी ही रूपवती थी। एक बार कन्या के चातुर्मासिक मज्जन का महोत्सव था। उस समय राजा ने स्वर्णकार मण्डल को आदेश दिया- "राजमार्ग के पास बने पुष्प मण्डप में अनेक रंगों से रंगे हुए चावलों से नगर की रचना करो। उस नगर के मध्यभाग में एक पट्टक बनायो।”
स्वर्णकारों ने अपने महाराजा की आज्ञा के अनुसार सब कार्य सम्पन्न कर उन्हें सूचित किया ।
___ अपनी आज्ञानुसार नगरी का आलेखन हो जाने पर राजा ने कन्या को पट्ट पर बिठला कर सुवर्ण-रौप्यमय कलशों से उसे स्नान कराया, फिर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित एवं अलंकृत हो कन्या पितृवन्दन को आई तो राजा उसके रूप-लावण्य को देख कर विस्मित हो गया । वर्षधर पुरुषों को बुला कर राजा ने पूछा--"क्या तुमने कहीं सुबाहु कन्या के समान रूप-लावण्य अन्य किसी कन्या का देखा है ?"
___एक वर्षधर पुरुष ने कहा--"महाराज ! एक बार हम राज-कार्य से मिथिला गये थे, वहां महाराज कुम्भ की पुत्री निदेह राजवर कन्या मल्लिकुमारी का मज्जन देखा । उसके सम्मुख यह सुबाहु का मज्जन लाखवें भाग भी नहीं है।"
यह सुन कर कुरणालाधिपति का गर्व गल गया और वह मल्लिकुमारी के सौन्दर्य के दर्शन को अत्यन्त व्यग्र और लालायित हो गया।
कुणालाधिपति रुप्पी ने भी कुम्भ महाराज के पास अपने दूत को जाने की आज्ञा देते हुए कहा- 'तुम शीघ्र ही मिथिला जा कर महाराज कुम्भ से
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