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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [अरहनक द्वारा दिव्य-कुण्डल- . में भी प्रवेश करते हो, क्या तुमने ऐसा मनोहर श्री दामगण्ड कहीं अन्यत्र भी देखा है ?
सुबुद्धि ने कहा-"महाराज ! मैं आपका संदेश ले कर एक बार मिथिला गया था। वहां महाराज कुम्भ की पुत्री मल्ली विदेह राजवर कन्या के वार्षिक जन्म-महोत्सव के अवसर पर जो दिव्य श्री दामगण्ड मैंने देखा, उसके समक्ष महाराज्ञी देवी पदमावती का यह श्री दामगण्ड लक्षांश भी नहीं है । उसने विदेह रायवर कन्या मल्लीकुमारी के सौन्दर्य का बड़ा ही आश्चर्यकारी परिचय दिया, जिसे सुन कर कौशलेश प्रतिबुद्धि मल्लीकुमारी पर पर्णरूपेण मुग्ध हो गये।
राजप्रासाद में आकर कोशलाधीश महाराज प्रतिबद्ध ने अपने एक अति कुशल दूत को बुला कर कहा- "देवानुप्रिय ! तुम आज ही मिथिला की ओर प्रस्थान करो और मिथिला के महाराजा कुम्भ के समक्ष जा कर मेरा यह सन्देश सुनायो कि इक्ष्वाकु कुल कमल दिवाकर साकेत पति कौशलेश्वर महाराजा प्रतिबुद्ध आपकी पुत्री विदेह वर राजकन्या मल्लीकुमारी को अपनी पत्नी के रूप में वरण करना चाहता है । राजकुमारी मल्ली को प्राप्त करने के लिये कौशलेश्वर अपने कौशल जनपद के सम्पूर्ण राज्य को भी न्यौछावर करने के लिये समुद्यत हैं।"
दूत ने सांजलि शीश झुका “यथाज्ञापयति देव !" कहते हुए अपने स्वामी की आज्ञा को शिरोधार्य किया । वह दूत अतीव प्रमुदित हो अपने घर आया और पाथेय, अनचर और कुछ सैनिकों की व्यवस्था कर उन्हें साथ ले मिथिला की ओर प्रस्थित हो गया।
प्ररहन्नक द्वारा दिव्य कुण्डल-युगल की भेंट जिस समय भगवती मल्ली ने किशोरी वय में प्रवेश किया, उस समय अंग जनपद के अधीश्वर चन्द्रच्छाग अंग राज्य की राजधानी चम्पा नगरी में (अंग जनपद के) राजसिंहासन पर प्रासीन थे।
उस समय चम्पा नगरी में सम्मिलित रूप से व्यापार करने वाले अरहन्नक प्रमुख बहुत से पोतवणिक् रहते थे । वे व्यापारी जहाजों द्वारा दूर-दूर के अनेक देशों में व्यापार के लिये साथ-साथ समुद्री यात्राएं करते रहते थे। वे सभी पोतवणिक विपूल वैभव शाली, ऐश्वर्यशाली और समद्ध थे । उनके भण्डार धन, धान्यादिक से परिपूर्ण थे । कोई भी व्यक्ति उनका पराभव करने में समर्थ नहीं था। उन नौकानों से व्यापार करने वाले व्यापारियों में अरहन्नक नाम का प्रमुख व्यापारी न केवल धन-धान्यादिक से ही समद्ध था, अपितु वह धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाला सच्चा श्रमणोपासक और जीव तथा अजीव के स्वरूप का ज्ञाता, तत्वज्ञ एवं मर्मज्ञ था । धर्म में उसकी आस्था अविचल थी।
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