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________________ गर्भ में प्रागमन] भगवान् श्री मल्लिनाथ २६१ तदनन्तर भगवती मल्ली ने उस मणिपीठिका पर साक्षात् अपने ही समान देहाकार, वर्ण, वय, रूप, लावण्य और यौवन आदि गुणों से सर्वथा सम्पन्न एक स्वर्णमयी ऐसी पूतली का निर्माण किया, जिसको देखते ही सुविचक्षण से सूविचक्षण दर्शक भी यही समझे कि यह भगवती मल्ली खड़ी हैं। अपनी उस प्रतिमा के शिर पर भगवती मल्ली ने एक छिद्र रख कर उसे पद्मपत्र के ढक्कन से ढक दिया। साक्षात् अपने जैसी ही प्रतिमा का निर्माण करने के पश्चात् मल्ली भगवती स्वयं जो जो मनोज्ञ अशन, पान, खादिम और स्वादिमचार प्रकार का पाहार करती उस चार प्रकार के आहार में से एक-एक ग्रास (कवल) प्रतिदिन उस पुतली में डाल कर उसे पद्मपत्र के ढक्कन से ढक देती। प्रतिदिन का यह क्रम निरन्तर चलता रहा । उस कनकमयी पुतली में मस्तक के छिद्र से प्रतिदिन चतुर्विध पाहार का एक एक ग्रास डालते रहने से उस में बड़ी ही भयंकर और दुस्सह्य दुर्गन्ध उत्पन्न हुई । वह दुर्गन्ध मृत मानव अथवा मृत पशु के कलेवर के कई दिन पड़े रहने पर, उससे निकलने वाली दुर्गन्ध से भी अनेक गुना अधिक दुस्सह्य, अनिष्टतम, अमनोज्ञतम और पास-पास के सम्पूर्ण वायुमण्डल को दुर्गन्धित एवं दूषित बना देने वाली थी। प्रलौकिक सौन्दर्य की ख्याति उन्मुक्त-बालभावा भगवती मल्ली के अलौकिक रूप-लावण्य और उत्कृष्टतम गुणों की ख्याति दिग्दिगन्त में फैलने लगी। जिन दिनों मति, श्रुति और अवधिज्ञान से सम्पन्ना भगवती मल्ली अपने पूर्वभव. के मित्र राजाओं के मोहभाव का शमन करने के लिये मोहन घर का निर्माण करवा रहीं थीं, उन्हीं दिनों भगवती मल्ली के पूर्वजन्म के बालसखा उन छहों राजाओं को भगवती मल्ली के प्रति विभिन्न ६ कारणों से प्रगाढ़ प्रीति उत्पन्न हुई । प्रतिबुद्ध आदि उन छहों राजाओं को जिस-जिस निमित्त से भगवती मल्ली के प्रति गाढ़तम अनुराग हुआ, उन निमित्तों का सार रूप विवरण इस प्रकार है : कौशलाधीश प्रतिबुद्धि का अनुराग एक बार साकेतपुर में प्रतिबुद्धि राजा ने रानी पद्मावती के लिये नागघर के यात्रा महोत्सव की घोषणा की और मालाकारों को अच्छे से अच्छा माल्य गुच्छ (पुष्पस्तबक) बनाने का आदेश दिया। जब राजा और रानी नागार में पाये और नाग प्रतिमा को उन्होंने वन्दन किया, उस समय मालाकारों द्वारा प्रस्तुत एक श्री दामगण्ड (पुष्पस्तबक) को राजा ने देखा और विस्मित हो कर अपने सुबुद्धि नामक प्रधान से प्रश्न किया- "हे देवानुप्रिय ! तुम राजकार्य से बहुत से ग्राम, नगर आदि में घूमते रहते हो, राजाओं के भवनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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