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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[भगवान् मल्लिनाथ का
इन्द्रों, इन्द्रारिणयों, चार जाति के देवों एवं देवियों ने बड़े ही हर्षोल्लास के साथ १९वें तीर्थंकर का जन्म महोत्सव मनाया ।
चारों जाति के देवों द्वारा जन्म महोत्सव मनाये जाने के पश्चात् महाराजा कुम्भ ने भगवान का नामकरण किया । गर्भकाल में माता को पांच वर्गों के पुष्पों की शय्या और दामगण्ड का दोहद उत्पन्न हुआ था, जिसकी कि पूर्ति देवों द्वारा की गई थी। अतः महाराजा कुम्भ ने अपनी पुत्री का नाम मल्ली रखा। मल्ली राजकुमारी अनुक्रमशः दिन प्रतिदिन वृद्धिगत होने लगी। वे ऐश्वर्य आदि गरणों से युक्त थीं। वे जयन्त नामक विमान से च्यवन कर आई थीं और अनपम कान्ति एवं शोभा से सम्पन्न थीं। वे दासियों तथा दासों से परिवृत्त और समवयस्का सहचरियों-सहेलियों के परिकर अर्थात् समूह से युक्त थीं।
उनके बाल भ्रमर के समान काले और चमकीले थे । आँखें बड़ी ही सुहानी थीं । प्रोष्ठ बिम्ब फल के समान लाल-लाल और दन्तपंक्ति श्वेत एवं चमकीली थी। उनके अंगोपांग नवविकसित कमल पुष्पवत् मदुल मंजुल एवं कोमल थे । उनके निश्वासों से प्रफुल्लित नीलकमल की गन्ध के समान सुगन्ध समग्र वातावरण में व्याप्त हो जाती थी।
इस प्रकार शुक्ल पक्ष की द्वितीया के चन्द्र की कला के समान अनुक्रमश: वृद्धिगत होती हुई विदेह राजकुमारी भगवती मल्ली जब बाल्यावस्था से किशोरी अवस्था में प्रविष्ट हुई तो उनकी देहयष्टि अत्युत्कृष्टतम रूप, लावण्य एवं यौवन से सम्पन्न हो गई। जब वह मल्ली कुमारी सौ वर्ष से कुछ ही न्यून. अवस्था की हुई, उस समय अपने पूर्वजन्म के मित्र इक्ष्वाकुराज प्रति बुद्धि, अंग देशाधिप चन्द्रच्छाय, काशीराज-शंख, कुणालाधिपति रुप्पी, कुरुराज अदीनशत्रु और पांचाल नरेश जितशत्रु-इन छहों राजाओं को अपने विपुल अवधिज्ञान द्वारा देखती, जानती हुई अपनी सखियों के साथ सुखपूर्वक विचरण करने लगी। उस समय मल्ली राजकुमारी ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर कहा--"हे देवानप्रियो ! तुम लोग अशोक वाटिका में सैकड़ों स्तम्भों पर आधारित एक विशाल मोहन-घर का निर्माण कर उसके मध्य भाग में छः गर्भ ग्रहों के बीचोंबीच एक जालीगह की रचना कर उस जालगृह के मध्यभाग में एक मणिमयी पीठिका (चबूतरे) का निर्माण करो। यह सब निर्माण कार्य शीघ्र ही सम्पन्न कर मुझे सूचित करो । मल्ली विदेह राजदुलारी के कौटुम्बिक पुरुषों ने भगवती मल्ली की आज्ञा का पालन करते हुए उनकी इच्छा के अनुरूप अतीव मनोहर उस मोहनघर में पृथक्-पृथक् छैः गर्भग्रह, जालीगृह और छहों गर्भग्रहों से स्पष्टतः दिखने वाले मणिपीठ का निर्माण कर, उस निर्माण कार्य के सम्पूर्ण होने की सचना भगवती मल्ली को दी।
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