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गर्भ में प्रागमन
भगवान् श्री मल्लिनाथ
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हए उसके गर्भकाल के तीन मास पूर्ण हो गये, तब उसे एक अतीव प्रशस्त दोहद (दोहला) उत्पन्न हुआ। उसके मन में एक उत्कट साध जगी, जो इस प्रकार थी :
"वे मातएं धन्य हैं, जो जल और स्थल में उत्पन्न एवं प्रफुल्लित हुए पाँच रंगों के सुगन्धित सुमनोहर पुष्पों के ढेर से समीचीनतया सुसंस्कारित, समाच्छादित, सुसज्जित शय्या पर बैठती और शयन करती हैं, और गुलाब, मोगरा, चम्पक, अशोक, पुन्नाग, नाग, मरुपा, दमनक और कुब्जक के रंग-बिरंगे हृदयहारी सुमनों के समूह से उत्कृष्ट कलात्मक कौशलपूर्वक ग्रथित किये गये, स्पर्श करने में सुतरां सुकोमल, देखने में नयनानन्दप्रदायक-प्रीतिकारक, तृप्तिकारक, सम्मोहक, मादक महा सुरभि से सम्पूर्ण वायुमण्डल को मगमगायमान सुरभित, सुगन्धित करने वाले दामगण्ड-पुष्पस्तबक को सूघती हुई अपने गर्भ-मनोरथ की, अपने गर्भकाल की साध की, अपनी गुर्विणी अवस्था के दोहद की पूर्ति करती हैं।"
समीप ही में रहने वाले वारणव्यन्तर देवों ने, महारानी प्रभावती के दोहदोत्पत्ति का परिज्ञान होते ही, दोहद के अनुरूप, जल तथा स्थल में उत्पन्न हुए पाँच वर्णों के प्रफुल्लित एवं सुन्दर पुष्पों के ढेर से महारानी की शय्या को सुचारुरूपेण समाच्छादित एवं सजा दिया और दोहद की पूर्ति करने में पूर्णरूपेण सक्षम, उपरिवरिणत सभी भाँति के सुगन्धित, सुविकसित, सुन्दरातिसुन्दर सुमनों से उत्कृष्टतम कला-कौशल पूर्वक गुथा हुमा एक अद्भुत् अलौकिक दामगण्ड-पुष्पस्तवक (गुलदस्ता) महारानी के समक्ष लाकर प्रस्तुत कर दिया ।
जल तथा थल में पुष्पित-विकसित पंच वर्णात्मक प्रभूत पुष्पनिचय से चातुरीपूर्वक चित्रित-समाच्छादित नयनाभिराम सुकोमल पुष्प शय्या को और अपने मनोरथ के शतप्रतिशत अनुकल, नयन-नासिका-श्रवण-तन-मन-मस्तिष्क को सर्वथा संतृप्त कर देने वाले मनोज्ञ सुमन-स्तबक को देखते ही महारानी हर्पविभोर हो उठी, उसके हृदय की कली-कली खिल उठी। उसने सुकोमल सुमन-शय्या पर बैठ कर, शयन कर और पुप्पस्तबक को सूघसूघ कर, देख-देख कर अपने प्रशस्त दोहद की पूर्णरूपेण पति की । उसकी पाँचों इन्द्रियां तप्त हो गई, रोम-रोम तुष्ट हो गया। इस प्रकार राजा एवं प्रजा द्वारा प्रशंसित प्रशस्त अपना दोहद पूर्ण होने पर महागनी प्रभावती पूर्णतः प्रसन्न एवं प्रमुदित रहने लगी । गर्भकाल के सवा नौ मास पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी की मध्य गत्रि के समय चन्द्रमा का अश्विनी नक्षत्र के साथ योग होने पर, जिस समय कि सूर्य आदि ग्रह उच्च स्थान पर स्थित थे, जनपदों के निवासी आनन्दमग्न एवं परम प्रसन्न थे, उस समय महारानी प्रभावती ने बिना किसी बाधा-पोड़ा के सुखपूर्वक १६वें तीर्थंकर को जन्म दिया। चौसठ
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