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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[भगवान् मल्लिनाथ का
उसके विशाल-आयत-ललित लोचन युगल की पलकें मृणाल तुल्या ग्रीवा के साथ ही झक गई। उसने ईषत स्मित के साथ अंजलि भाल पर रख हर्षातिरेकवशात् अवरुद्ध कण्ठ से वीणा के तार की झंकार तुल्य सुमधुर विनम्र स्वर में घोमे से कहा-"प्राणाधिक दयित ! आपके ये सुधासिक्त परम प्रीति प्रदायक वचन कर्णरन्ध्रों के माध्यम से मेरे मानस में अमृत उंडेल उसे प्राप्लावित, प्राप्यायित कर रहे हैं । अब मुझे अपने अन्तर में हर्ष सागर के उद्वेलित होने का कारण समझ में आ गया है। आपके वचन अक्षरशः सत्य हों। मेरे सब उहापोह शान्त हो गये हैं । मैं आश्वस्त हो गई हूं । अब आप विश्राम करें।"
यह कह कर महारानी प्रभावती उठी । उसने महाराज कुम्भ को झुककर प्रणाम किया और वह अपने शयनकक्ष की ओर लौट गई। आँखों में, तनमन में और रोम-रोम में आनन्दातिरेक समाया हुआ था, निद्रा के लिये वहाँ कोई अवकाश ही नहीं रहा । इसके साथ ही साथ महारानी को यह आशंका भी थी कि अब सोने पर कहीं कोई दुःस्वप्न न आ जाय, इसलिये उसने शेष रात्रि धर्माराधन करते हुए धर्मजागरणा के रूप में व्यतीत की।
दैनिक आवश्यक कृत्यों से निवृत्त हो प्रात:काल महाराज कुम्भ ने स्वप्न पाठकों को सादर आमन्त्रित किया। उन्हें महारानी के चौदह महास्वप्नों का विवरण सुना कर स्वप्न-फल पूछा।
__ स्वप्न-शास्त्र के पारंगत स्वप्न पाठकों ने स्वप्न-शास्त्र के प्रमाणों के आधार पर परस्पर विचार-विमर्श द्वारा स्वप्नों के फल के सम्बन्ध में सर्वसम्मत निर्णय किया। तदनन्तर स्वप्न पाठकों के मुखिया ने स्वप्न-फल सुनाते हुए महाराज कुम्भ से कहा-“महाराज.! जो स्वप्न महारानी ने देखे हैं, वे स्वप्नों में सर्वश्रेष्ठ स्वप्न हैं। स्वप्न-शास्त्र में इन स्वप्नों को "चौदह महास्वप्न" की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार चौदह महास्वप्न वस्तुतः केवल तीथंकरों और चक्रवतियों की माताएं ही गर्भधारण की रात्रि में देखती हैं। महारानी द्वारा देखे गये ये महास्वप्न पूर्व-सचना देते हैं कि महारानी की रत्नकुक्षि में ऐसा महान् पुण्यशाली प्राणी पाया है, जो भविष्य में धर्म-चक्रवर्ती तीर्थंकर अथवा भरत क्षेत्र के छहों खण्डों का अधिपति चक्रवर्ती सम्राट् होगा।"
स्वप्न पाठकों के मुख से स्वप्नों का फल सुन मिथिलापति महाराज कुम्भ और महारानी प्रभावती-दोनों ही बड़े प्रसन्न-प्रमुदित हुए । महाराज कुम्भ ने स्वप्न पाठकों को पुरस्कारादि से सन्तुष्ट एवं सम्मानित कर विदा किया।
तदनन्तर परम प्रमुदिता महारानी प्रभावती संयमित एवं समुचित पाहार-विहार का पूरा ध्यान रख कर सुखपूर्वक गर्भ को वहन करती हुई सदा शान्त एवं प्रसन्न मुद्रा में सुखोपभोग करने लगी। इस प्रकार सुखोपभोग करते
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