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गर्भ में आगमन ]
भगवान् श्री मल्लिनाथ
वाणी बोलती रही । महारानी के मृदु वचन सुनकर महाराज की निद्रा खुली । वे शय्या पर उठ बैठे ।
"स्वागत है महादेवि ! आज इस समय शुभागमन कैसे ? " महाराजा कुम्भ ने स्नेहसिक्त स्वर में प्रश्न किया । पर महारानी के मुखमण्डल पर दृष्टि पड़ते ही अपने इस प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा न कर उत्कण्ठापूर्ण मुद्रा में पूछा"महादेवि ! श्राज तुम्हारे मुखमण्डल पर भामण्डल का सा दिव्य प्रकाश स्पष्टतः दृष्टिगोचर हो रहा है । तुम आज प्रतीव प्रसन्न प्रतीत हो रही हो । तुम्हारे लोचन युगल से आज अलौकिक प्रालोक की किरणें प्रकट हो रही हैं । अवश्य ही आज तुम कोई न कोई विशिष्ट शुभ संवाद सुनाने श्राई हो । हमें भी अपने हर्ष का भागीदार बनाओ ।
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महारानी प्रभावती ने अंजलि भाल से छुप्राते हुए विनम्र, मृदु, मंजुल स्वर में कहा - "देव ! अभी अभी अर्द्ध जागृतावस्था में मैंने अद्भुत १४ स्वप्न देखे हैं । उन स्वप्नों को देख कर मेरी निद्रा भंग हुई । सहसा मैं उठ बैठी । अकारण ही मेरा मनमयूर हर्ष विभोर हो नाच उठा। मैंने प्राज से पहले इतने असीम और अद्भुत श्रानन्द का अनुभव कभी नहीं किया । मुझे प्राज सब कुछ सुहाना लग रहा है । मैं अपने प्रानन्द का पारावार शब्दों से प्रकट करने में अक्षम हूं। मुझे स्पष्ट प्रतीत होने लगा कि मेरे सीमित मानस में श्रानन्द का उद्वेलित अथाह उदधि समा नहीं रहा है, इसीलिये अपने श्रानन्द का आधा भाग प्रापको देकर अपने आनन्द के भार को हल्का करने हेतु आपकी यह चरण चंचरीका आपकी सेवा में इस समय उपस्थित हुई है । प्रारणाधार ! मैं अभी तक अपने इस पारावार विहीन हर्ष का कारण नहीं समझ पा रही हूं। ऐसा आभास होता है कि हो न हो इन स्वप्नों का इस अपार आनन्द से अवश्य ही कोई सम्बन्ध है ।
मिथिलेश्वर महाराज कुम्भ महारानी प्रभावती के मुख से उन चौदह स्वप्नों को सुन कर परम प्रमुदित हुए और बोले - "महादेवि ! तुम्हारे ये स्वप्न यही बता रहे हैं कि अलौकिक शक्ति सम्पन्न कोई महान् पुण्यशाली प्राणी तुम्हारी कुक्षि में आया है । उस महान् आत्मा के प्रभाव के परिणामस्वरूप ही तुम्हारे मुख मण्डल और अंग प्रत्यंग से प्रकाशपुंज प्रकट हो रहा है । तुम्हारे असीम आनन्द का स्रोत भी तुम्हारी कुक्षि में आया हुआ वही पुण्यवान् प्राणी प्रतीत होता है । महादेवि ! तुम वस्तुतः महान् भाग्यशालिनी हो । तुम्हारे महास्वप्न निश्चित रूप से महान् शुभ फल प्रदायी होंगे, ऐसी मेरी धारणा है । प्रातःकाल स्वप्न पाठकों को बुला कर उनसे इन महास्वप्नों के फल के विषय में विस्तृत विवरण ज्ञात कर लिया जायगा ।
अपने पति के मुख से स्वप्नों का फल सुन कर महारानी प्रभापती मन ही मन अपने नारी जीवन को धन्य समझ प्रमुदित हुई । नारी सुलभ लज्जा से
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