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________________ अपनी बात (आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज) धार्मिक इतिहास का आकर्षण किसी भी देश, जाति, धर्म अथवा व्यक्ति के पूर्वकालीन इतिवृत्त को इतिहास कहा जाता है। उसके पीछे विशिष्ट पुरुषों की स्मृति भी हेतु होती है। इतिहास-लेखन के पीछे मुख्य भावना होती है- महापुरुषों की महिमा प्रकट करते हुए भावी पीढ़ी को तदनुकूल आचरण करने एवं अनुगमन करने की प्रेरणा प्रदान करना। सामान्यतः जिस प्रकार देश, जाति और व्यक्तियों के विविध इतिहास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं, उस प्रकार धार्मिक इतिहासों की उपलब्धि दृष्टिगोचर नहीं होती। इसके परिणामस्वरूप केवल जनसाधारण ही नहीं अपितु अच्छे पढ़े-लिखे विद्वान् भी अधिकांशतः यही समझ रहे हैं कि जैन धर्म का कोई प्राचीन प्रामाणिक इतिहास आज उपलब्ध नहीं है। परन्तु वास्तव में ऐसी बात नहीं है। जैन धर्म के इतिहास-ग्रन्थ यद्यपि चिरकाल से उपलब्ध हैं और उनमें आदिकाल से प्रायः सभी प्रमुख धार्मिक घटनाएं उल्लिखित हैं, तथापि ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध (सिलसिलेवार) एवं रुचिकर आलेखन किसी एक ग्रंथ के रूप में नहीं होने, तथा ऐतिहासिक सामग्रीपूर्ण ग्रन्थ प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में आबद्ध होने के कारण वे सर्वसाधारण के लिए सहसा बोधगम्य, आकर्षण के केन्द्र एवं सर्वप्रिय नहीं बन सके। यह मानव की दुर्बलता है कि वह प्रायः भोग एवं भोग्य सामग्री की ओर सहज ही आकृष्ट हो जाता है अतः संसार के दृश्य, मोहक पदार्थ और मानवीय जीवन के स्थूल व्यवहारों के प्रति जैसा पाठकों का आकर्षण होता है, वैसा धर्म अथवा धार्मिक इतिहास के प्रति नहीं होता। क्योंकि धर्म एवं धार्मिक इतिहास में मुख्यतः त्याग-तप की बात होती है। जैन धर्म का इतिहास धर्म का स्वतन्त्र इतिहास नहीं होता। सम्यक विचार व आचार रूप धर्म हृदय की वस्तु है, जिसका कब, कहाँ और कैसे उदय, विकास अथवा ह्रास हुआ तथा कैसे विनाश होगा यह अतिशय ज्ञानी के अतिरिक्त किसी को ज्ञात नहीं। ऐसी स्थिति में उसका इतिहास कैसे लिखा जाये यह समस्या है। अतः इन्द्रियातीत अतिसूक्ष्म धर्म का अस्तित्व प्रमाणित करने के लिए धार्मिक महापुरुषों का जीवन और उनका उपदेश ही धर्म का परिचायक है। धर्म का आविर्भाव, तिरोभाव एवं (१०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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