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________________ जीवन वृत्त] भगवान् श्री मल्लिनाथ २५५ निष्क्रीड़ित जैसी ६ वर्ष २ मास और १२ रात्रियों में निष्पन्न की जाने वाली घोर-उग्र तपश्चर्याओं की आग में अपने-अपने आत्मदेव को तपा-तपा कर अपनेअपने कर्म मल को क्षीण से क्षीणतर करने का प्रबल प्रयास किया। लघुसिंह निष्क्रीड़ित और महासिंह निष्क्रीड़ित तपस्यात्रों को पूर्ण करने के पश्चात् वे सातों मुनि उपवास, बेला, तेला आदि तपस्याए करते हुए अपने कर्मसमूह को नष्ट करने में प्रयत्नशील रहे। इस प्रकार घोर तपश्चरण करते रहने के कारण महाबल आदि सातों मुनियों के शरीर केवल चर्म से ढंके हुए अस्थि पंजर मात्र अवशिष्ट रह गये, उस समय उन्होंने स्थविरों से प्राज्ञा लेकर चारु पर्वत पर संलेखना के साथ यावज्जीव अशन-पानादि का प्रत्याख्यान रूप पादपोपगमन संथारा किया। उन महाबल आदि सातों महामनियों ने ८४ लाख वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन किया और अन्त में ४ मास की तपस्यापूर्वक ८४ लाख पूर्व की अपनी-अपनी आयु पूर्ण कर जयन्त नामक अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र देव हुए। महाबल पूर्ण ३२ सागर की प्राय वाला देव और शेष अचल आदि छहों मूनि बत्तीस सागर में कुछ कम स्थिति वाले देव हुए। जयन्त विमान में वे सातों मित्र देव अपने महद्धिक देव भव के दिव्य सुखों का उपभोग करने लगे। प्रचल प्रादि ६ मित्रों का जयन्त विमान से च्यवन महाबल को छोड़ शेष अचल आदि छहों मित्रों के जीव जयन्त विमान की अपनी देव पाय पूर्ण होने पर इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विशुद्ध मातपित वंश वाले राजकुलों में पुत्र रूप से उत्पन्न हुए । अचल का जीव कौशल देश की राजधानी अयोध्या में प्रतिवद्धि नामक कौशल नरेश हमा। धरण का जीव अंग जनपद की राजधानी चम्पा नगरी में चन्द्रछागा नामक अंगराज हुआ । अभिचन्द का जीव काशी जनपद को राजधाना बनारस में शंख नामक काशी नरेश्वर हुमा । पूरण का जीव कुणाला जनपद की राजधानी कुणाला नगरी में रुक्मी नामक कुणालाधिपति हुआ। वसु का जीव पुरु जनपद की राजधानी हस्तिनापुर में अदीनशत्रु नामक कुरुराज और वैश्रवण का जीव पांचाल जनपद की राजधानी काम्पिल्यपुरी नगरी में जितशत्रु नामक पांचालाधिपति हुआ । ___भगवान मल्लिनाथ का गर्भ में प्रागमन महाबल का जीव जयन्त नामक अनत्तर विमान के देव भव की अपनी आय पूर्ण होने पर १६वें तीर्थंकर मल्लिनाथ के रूप में उत्पन्न हुआ। जिस समय सूर्यादि ग्रह उच्च स्थान में स्थित थे, चारों दिशाएँ दिग्दाहादि उपद्रवों से विहीन होने के कारण सौम्य, तीर्थंकर पुण्य प्रकृति के बन्ध वाले PatanS3Maaysia, Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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