________________
२४८
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[परिनिर्वाण अपना मोक्षकाल समीप प्रतीत हुआ तो एक हजार मुनियों के साथ सम्मेतशिखर पर प्रभु ने एक मास का अनशन ग्रहण किया और अन्त समय में शैलेशी दशा को प्राप्त कर चार अघाति-कर्मों का सर्वथा क्षय कर मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को रेवती नक्षत्र के योग में चौरासी हजार वर्ष की आय पूर्ण कर प्रभु सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त हुए, अर्थात् शरीर त्याग निरञ्जन-निराकार-सिद्ध बन गये ।
000
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org