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________________ जन्म भ० श्री शान्तिनाथ २३६ विविध परीषह दिये परन्तु राजा का ध्यान विचलित नहीं हुआ । सूर्योदय होतेहोते देवियां अपनी हार मानती हुई राजा को नमस्कार कर चली गई। प्रातःकाल राजा मेघरथ ने दीक्षा लेने का संकल्प किया और अपने पत्र को राज्य देकर महामुनि घनरथ के पास अनेक साथियों के संग दीक्षा ले ली। प्राणि-दया से प्रकृष्ट-पुण्य का संचय किया ही था, फिर तप, संयम की आराधना से उन्होंने महती कर्म-निर्जरा की और तीर्थंकर-नामकर्म का उपार्जन कर लिया। अन्त-समय अनशन की आराधना कर सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए तथा वहां तेंतीस सागर की आयु प्राप्त की। जन्म भाद्रपद कृष्णा सप्तमी को भरणी नक्षत्र के शुभ योग में मेघरथ का जीव सर्वार्थसिद्ध-विमान से ज्यब कर हस्तिनापुर के महाराज विश्वसेन की महारानी अचिरा की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । माला ने गर्भधारण कर उसी रात में मंगलकारी चौदह शुभ-स्वप्न भी देखे । उचित आहार-विहार से गर्भकाल पूर्ण कर ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी को भरणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय माता ने सुखपूर्वक कांचनवीय पुत्ररत्न को जन्म दिया। इनके जन्म से सम्पूर्ण लोक में उद्योत हुप्रा और नारकीय जीवों को भी क्षण भर के लिए विराम मिला। महाराज ने अनुपम आमोद-प्रमोद के साथ जन्म-महोत्सव मनाया। नामकरण शान्तिनाथ के जन्म से पूर्व हस्तिनापुर नगर एवं देश में कुछ काल से महामारी का रोग चल रहा था । प्रकृति के इस प्रकोप से लोग भयाक्रान्त थे। माता अचिरादेवी भी इस रोग के प्रसार से चिन्तित थीं। माता अचिराटेवी के गर्भ में प्रभु का आगमन होते ही महामारी का भयंकर प्रकोप शान्त हो गया, अतः नामकरण संस्कार के समय आपका नाम शान्तिनाथ रखा गया।' विवाह और राज्य द्वितीया के चन्द्रमा की तरह बढ़ते हुए कुमार शान्तिनाथ जब पच्चीस हजार वर्ष के हो युवावस्था में पाये तो पिता महाराज विश्वसेन ने अनेक राजकन्याओं के साथ इनका विवाह करा दिया और कुछ काल के बाद १ गन्भत्थेण य भगवया सब्बदेसे संतीसमुप्पण्णा त्ति काऊरण सन्तितिणामं मम्मापितीहिं कयं ।। च. म. पु. च. पृ. १५० २ ततो सो जोवणं पत्तो पणुवीसवाससहस्साणी कुमारकालं गमेइ । [वसुदेव हिण्डी दूसरा भाग पृष्ठ ३४०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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