________________
चक्रवर्ती मघवा
पन्द्रहवें तीर्थंकर भगवान् धर्मनाथ और सोलहवें तीर्थंकर भ० शान्तिनाथ. के अन्तराल काल में तीसरा चक्रवर्ती मघवा हुआ ।
इसी भरतक्षेत्र की श्रावस्ती नामक नगरी में समुद्र विजय नामक एक महा प्रतापी राजा राज्य करता था। उनकी पट्टमहिषी का नाम भद्रा था। राजा और रानी दोनों ही बड़े न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ थे । एक रात्रि में महारानी भद्रा ने १४ शुभस्वप्न देखे । दूसरे दिन प्रातःकाल महाराज समुद्रविजय ने स्वप्नपाठकों को बुलाकर महारानी के स्वप्नों के सम्बन्ध में जिज्ञासा प्रकट की। नैमित्तिकों ने १४ महास्वप्नों के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करने के पश्चात् महाराजा से निवेदन किया कि महारानी के गर्भ में एक महान् पुण्यशाली एवं महाप्रतापी प्राणी पाया है । महादेवी ने जो उत्तम १४ महास्वप्न देखे हैं, उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि वे चक्रवर्ती सम्राट की माता बनेंगी।
गर्भकाल पूर्ण होने पर महादेवी भद्रा ने एक महान् तेजस्वी, सुन्दर एवं सुकुमार पुत्ररत्न को जन्म दिया। महाराजा समुद्रविजय ने देवेन्द्र के समान प्रोजस्वी तथा तेजस्वी अपने पुत्र का नाम मघवा रखा। राजकुमार मघवा का बड़े ही राजसी ठाट-बाट से लालन-पालन किया गया और शिक्षायोग्य वय में उन्हें उस समय उच्च कोटि के कलाचार्यों के पास सभी प्रकार की राजकुमारोचित कलाओं एवं विद्यानों का अध्ययन कराया गया भोगसमर्थ युवावस्था में राजकुमार मघवा का अनेक कुलीन राजकन्यानों के साथ पाणिग्रहण कराया गया । युवराज मघवा २५,००० वर्ष तक कुमारावस्था में रहकर ऐहिक विविध सुखों का उपभोग करते रहे। तदनन्तर महाराज समुद्रविजय ने उनका राज्याभिषेक किया। महाराज मघवा २५ हजार वर्ष तक माण्डलिक राजा के रूप में न्याय-नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करते रहे। अपनी प्रायुधशाला में चक्ररत्न के उत्पन्न होने पर महाराज मघवा ने १० हजार वर्ष तक षट्खण्ड की साधना की और षट्खण्ड की सम्पूर्ण साधना के पश्चात् उनका चक्रवर्ती के पद पर महा. भिषेक किया गया। ३६ हजार (३९,०००) वर्ष तक वे भरतक्षेत्र के छहों खण्डों पर एकच्छत्र शासन करते हुए चक्रवर्ती की सभी ऋद्धियों का सुखोपभोग करते रहे । उनचालीस हजार वर्ष तक चक्रवर्ती सम्राट के पद पर रहने के अनन्तर उन्होंने श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण की । पचास हजार वर्ष तक उन्होंने विशुद्ध श्रमणाचार का पालन किया और अन्त में ५,००,००० वर्ष की प्राय पूर्ण होने पर वे तीसरे देवलोक में देव रूप से उत्पन्न हए । चक्रवर्ती मघवा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org