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शासन के तेजस्वी रत्न]
भगवान् श्री धर्मनाथ
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इस प्रकार जिनेन्द्र भगवान धर्मनाथ का प्रवचन देवों में सर्वत्र जनमानस में घर किये हुए था और सबके लिये आदरणीय बना हुआ था।
महामुनि सनत्कुमार एक लाख वर्ष तक संयम का पालन कर, अन्त समय की आराधना से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गये ।
धर्म परिवार भगवान धर्मनाथ के संघ में निम्न परिवार था :गणधर
- तियालीस [४३] अरिष्ट आदि केवली
- चार हजार पांच सौ [४,५००] मनःपर्यवज्ञानी - चार हजार पांच सौ [४,५००] अवधिज्ञानी
-- तीन हजार छ: सौ [३,६००] चौदह पूर्वधारी - नौ सौ [६०० वैक्रिय लब्धिधारी --- सात हजार [७,०००] वादी
.- दो हजार आठ सौ [२,८००] . . साधु
--- चौसठ हजार [६४,०००] साध्वी
-~- बासठ हजार चार सौ [६२,४००] श्रावक
- दो लाख चवालीस हजार [२,४४,०००] श्राविका
- चार लाख तेरह हजार [४,१३,०००]
परिनिर्वाण दो कम ढाई लाख वर्ष तक केवली-पर्याय में विचरकर प्रभु ने लाखों जीवों का उद्धार किया।
फिर प्रभु ने अपना मोक्षकाल निकट देखकर आठ सौ मुनियों के साथ सम्मेत-शिखर पर एक मास का अनशन किया और ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को पूष्य नक्षत्र में प्रयोगी-भाव में स्थित हो, मकल कर्मों का क्षय कर दस लाख वर्ष की आयु में सिद्ध, बुद्ध. मुक्त होकर निर्वाण-पद प्राप्त किया। ..
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