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________________ विवाह और राज्य भगवान् श्री अनन्तनाथ २२५ विवाह और राज्य __ चन्द्रकला की तरह बढ़ते हुए प्रभु ने कोमारकाल के सात लाख पचास हजार वर्ष पूर्ण कर जब तारुण्य प्राप्त किया तब पिता सिंहसेन ने प्रत्याग्रह से योग्य कन्याओं के साथ आपका पारिणग्रहण करवाया और राज्य की व्यवस्था के लिये आपको राज्य-पद पर भी अभिषिक्त किया। पन्द्रह लाख वर्ष तक समुचित रीति से राज्य का पालन कर जब आपने भोग्य-कर्म को क्षीण समझा तो मुनिव्रत ग्रहण करने का संकल्प किया। दीक्षा और पारणा — लोकान्तिक देवों की प्रेरणा से प्रभु ने वर्षीदान से याचकों को इच्छानुकूल दान देकर वैशाख कृष्णा चतुर्दशी को रेवती नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ सम्पूर्ण पापों का परित्याग कर मुनिधर्म की दीक्षा ग्रहण की। उस समय आपके बेले की तपस्या थी। दीक्षा के बाद दूसरे दिन वर्द्धमानपुर में जाकर प्रभु ने विजय भूप के यहां परमान्न से पारण किया। केवलज्ञान दीक्षित होने के बाद प्रभु तीन वर्ष तक छद्मस्थचर्या से ग्रामानुग्राम विचरते रहें फिर अवसर देख सहस्राम्र वन में पधारे और अशोक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थित हो गये। क्षपक-श्रेणी से कषायों का उन्मूलन कर शुक्लध्यान के दूसरे चरण से प्रभु ने धाति-कर्मों का क्षय किया और वैशाख कृष्णा चतुर्दशी को रेवती नक्षत्र में अष्टमभक्त-तपस्या से केवलज्ञान की उपलब्धि की। केवली होकर देव-मानवों की सभा में प्रभु ने धर्म-देशना दी और चतुर्विध संघ की स्थापना कर भाव-तीर्थकर कहलाये। द्वारिका के पास पहुंचने पर तत्कालीन वासुदेव पुरुषोत्तम ने भी आपका उपदेश-श्रवण किया और सम्यक्त्व धर्म की प्राप्ति की। धर्म परिवार भगवान् अनन्तनाथ के संघ में निम्न धर्म-परिवार था :गण एवं गणधर - पचास [५०] केवली - पांच हजार [५,००० मनःपर्यवज्ञानी' - पांच हजार [५,००० १ हेमचन्द्राचार्य ने त्रि० शलाका पुरु० च० में ४५०० मनःपर्यवज्ञानी लिखे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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