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________________ भगवान् श्री अनन्तनाथ भगवान् विमलनाथ के पश्चात् चौदहवें तीर्थंकर श्री अनन्तनाथ हए। पूर्वभव इन्होंने धातकीखण्ड की अरिष्टा नगरी में महाराज पद्मरथ के भव में तीर्थंकर-पद की साधना की। महाराज पद्मरथ बड़े शूरवीर और पराक्रमी राजा थे। द... . विरोधी राजाओं और समस्त महीमंडल को जीतकर भी मोक्ष-लक्ष्मी की साधना में उन्होंने उसको नगण्य समझा और कुछ समय बाद वैराग्य भाव से चित्तरक्ष गुरु के पास संयम ग्रहण कर तप-संयम की विशिष्ट साधना की और तीर्थंकर-नामकर्म का उपार्जन किया। अन्त समय में शुभ ध्यान से प्राण त्याग कर दसवें स्वर्ग के ऋद्धिमान् देव हुए। जन्म अयोध्या नगरी के महाराज सिंहसेन इनके पिता और महारानी सुयशा इनकी माता थीं । श्रावण कृष्णा सप्तमी को रेवती नक्षत्र में स्वर्ग से निकलकर पद्मरथ का जीव माता सुयशा की कुक्षि में गर्भ रूप से उत्पन्न हया । माता ने चौदह शुभ-स्वप्न देखे । गर्भकाल पूर्ण होने पर वैशाख कृष्णा त्रयोदशी के दिन रेवती नक्षत्र के योग में माता सुयशा ने सुखपूर्वक पुत्र-रत्न को जन्म दिया । देवों, दानव और मानवों ने जन्म की खुशियां मनाई। नामकरण दश दिन तक प्रामोद-प्रमोद मनाने के उपरान्त नामकरण करते समय महाराज मिहमेन ने विचार किया-"बालक की गर्भावस्था में प्राक्रमगार्थ प्राये हए अतीव उत्कट अपार शत्र-सैन्य पर भी मैंने विजय प्राप्त की अत: इस बालक का नाम अनन्तनाथ रखा जाय ।'' इस विचार के अनरूप ही प्रभ का नामकरण हुआ। १ (क) गर्भस्थेऽस्मिन् जितं पित्रानन्तं परबलं यतः । ततश्चक्रेऽनन्तजिदित्याख्यां परमेशितुः ।।त्रि०प० ४।४।४७ (ख) गम्भत्थे य भगवम्मि पिउरणा 'प्रणतं परबलं जिय ति तम्रो जहत्थं अणन्त इजिगो ति का नाम भवगगुरुगो ।। च० महापुरिम चग्यि, पृ.१२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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