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परिनिर्वाण]
भगवान् श्री विमलनाथ मनःपर्यवज्ञानी
पांच हजार पांच सौ (५,५००) अवधिज्ञानी
चार हजार आठ सौ (४,८००) चौदह पूर्वधारी
एक हजार एक सौ (१,१००) वैक्रिय लब्धि-धारी
नौ हजार (६,०००) वादी
तीन हजार दो सौ (३,२००) साधु
अड़सठ हजार (६८,०००) साध्वी
एक लाख माठ सौ (१,००,८००) श्रावक
दो लाख आठ हजार (२,०८,०००) श्राविका
चार लाख चौबीस हजार(४,२४,०००)
राज्य-शासन पर धर्म-प्रभाव तेरहवें तीर्थकर भगवान् विमलनाथ के समय में मेरक प्रतिवासुदेव और स्वयंभू वासुदेव हुए Timrahman
वि 'लनाथ के धर्म-शासन का साधारण जन से लेकर लोकनायक-शासकों पर भी पूरा, भाव था। भगवान् विमलनाथ के समवसरण की बात जान कर वासुदेव स्वयनू भी अपने ज्येष्ठ भ्राता भद्र बलदेव के साथ वन्दन करने गया
और प्रभु की वाणी सुनकर स्वयंभू ने सम्यक्त्व धारण किया और भद्र बलदेव ने श्रावक-धर्म ग्रहण किया।
वासुदेव स्वयंभू की मृत्यु के पश्चात् बलदेव भद्र ने विरक्त होकर मुनिधर्म ग्रहण किया और पैंसठ लाख वर्ष की भायु भोग कर अन्तिम समय की आराधना से मुक्ति प्राप्त की।
परिनिर्वाण दो वर्ष कम पन्द्रह लाख वर्ष तक केवली रूप से जन-जन को सत्य-मार्ग का उपदेश देकर जब प्रभु ने अपना आयुकाल निकट देखा तब छः सौ साधुनों के साथ उन्होंने एक मास का अनशन किया और मास के अन्त में शेष चार अघाति-कर्मों का क्षय कर आषाढ़ कृष्णा' सप्तमी को पुष्य नक्षत्र में शुद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर निर्वाण-पद प्राप्त किया। आपकी पूर्ण प्रायु साठ लाख वर्ष की थी।
Cameramani
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१ प्रवचन सारोबार, हरिवंश पु. और तिलोयपन्नत्ति में प्राषाढ कृष्णा ८ उल्लिखित है,
जब कि सत्तरिसय द्वार की गाथा ३०६ से ३१० में प्राषाढ़ कृष्णा ।
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