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________________ भगवान् श्री विमलनाथ भगवान् वासुपूज्य के बाद तेरहवें तीर्थंकर भगवान् श्री विमलनाथ हुए। पूर्वभव तीर्थंकर-नामकर्म का उपार्जन करने के लिये इन्होंने भी धातकी खण्ड की महापुरी नगरी में राजा पद्मसेन के भव में वैराग्य प्राप्त किया और जिनशासन की बड़ी सेवा की। मुनि सर्वगुप्त का उपदेश सुनकर ये विरक्त हए और शिक्षा-दीक्षा लेकर निर्मलभाव से आपने संयम की आराधना की। वहां बीस स्थानों की आराधना कर इन्होंने तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया और अन्त में समाधिपूर्वक पायु पूर्ण कर पाठवें सहस्रार-कल्प में ऋद्धिमान् देव रूप से उत्पन्न हुए । जन्म सहस्रार देवलोक से निकल कर पद्मसेन का जीव वैशाख शुक्ला द्वादशी को उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में माता श्यामा की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। ___ इनकी जन्मभूमि कंपिलपुर थी। विमल यशधारी महाराज कृतवर्मा इनके पिता थे और उनकी सुशीला पत्नी श्यामा प्रापकी माता थीं। माता ने गर्भ धारण के पश्चात् मंगलकारी चौदह शुभ-स्वप्न देखे और उचित आहार-विहार से गर्भकाल पूर्ण कर माघ शुक्ला तृतीया को उत्तराभाद्रपद में चन्द्र का योग होने पर सुखपूर्वक सुवर्णकान्ति वाले पुत्ररत्न को जन्म दिया। देवों ने सुमेरु पर्वत की प्रति पांडुकम्बल शिला पर प्रभु का जन्म-महोत्सव मनाया । महाराज कृतवर्मा ने भी हृदय खोल कर पुत्र जन्म की खुशियां मनाई। नामकरण दश दिनों के आमोद-प्रमोद के पश्चात महाराज कृतवर्मा ने नामकरण के लिये मित्रों व बान्धवजनों को एकत्र किया और बालक के गर्भ में रहने के समय माता तन, मन से निर्मल बनी रहीं, अतः बालक का नाम विमलनाथ रखा।' १ गर्भस्थे जननी तस्मिन् विमला यदजायत । ततो विमल इत्याख्यां, तस्य चक्रे पेता स्वयम् ।। त्रिष० ४।३।४८ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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