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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[केवलज्ञान]
प्रभ के पधारने की खबर सुनकर द्विपष्ठ ने भी साढ़े बारह करोड मुद्रामों का प्रीतिदान किया और वासुपूज्य भगवान् की वीतरागमयी वाणी सुनकर सम्यक्त्व ग्रहण किया तथा विजय बलदेव ने श्रावकधर्म अंगीकार किया। कालान्तर में मुनि-धर्म स्वीकार कर विजय ने शिव-पद प्राप्त किया।
परिनिर्वाण एक मास कम चौवन लाख वर्ष तक केवली पर्याय में विचर कर प्रभु ने लाखों भव्य-जनों को धर्म का संदेश दिया। फिर मोक्ष-काल निकट जानकर. चम्पा नगरी पधारे और छह सौ मुनियों के साथ एक मास का अनशन कर शुक्लध्यान के चतुर्थ चरण से अक्रिय होकर सम्पूर्ण कर्मों का क्षय किया एवं प्राषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी को उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त होकर प्रभु ने निर्वाण-पद की प्राप्ति की।
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