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जैन धर्म का मोलिक इतिहास
[राज्य शासन पर
उसी प्रकार यह तेजस्वी युवक भी मनुष्यों में राजा है । तुम किसी छोटे व्यक्ति के हाथ से नहीं मारे जा रहे हो।"
त्रिपष्ठ द्वारा उस भयंकर और शक्तिशाली सिंह के मारे जाने की खबर सुन कर अश्वग्रीव कांप उठा और उसे निश्चय हो गया कि इसी कुमार के हाथों उसकी मृत्यु होगी।
कुछ सोच विचार के बाद उसको एक उपाय सूझा कि इस वीरता के उपलक्ष में पुरस्कार देने के बहाने उन दोनों कुमारों को यहां बुला कर छल-बल से मरवा दिया जाय । अश्वग्रीव ने महाराज प्रजापति को संदेश भिजवाया"आपके दोनों राजकुमारों ने जो वीरतापूर्ण कार्य किया है उसके लिये हम उनको पुरस्कृत और सम्मानित करना चाहते हैं, अतः आप उन्हें यहां भिजवा दें।"
अश्वग्रीव के उपरोक्त संदेश के उत्तर में त्रिपष्ठ ने कहलवा भेजा-"जो राजा एक शेर को भी नहीं मार सका उससे हम किसी प्रकार का पुरस्कार लेने को तैयार नहीं हैं।"
कुमार त्रिपष्ट के इस उत्तर से अश्वग्रीव तिलमिला उठा और एक बड़ी चतुरंगिणी सेना लेकर उसने प्रजापति पर चढ़ाई कर दी। बलदेव और त्रिपष्ठ भी अपनी सेना के साथ रणांगण में प्रा डटे । दोनों ओर की सेनाएं भिड़ गई और बड़ा भीषण लोमहर्षक युद्ध हुआ।
उस समय त्रिपृष्ठ ने अश्वग्रीव से कहलाया कि निरर्थक नर-संहार से तो यह अच्छा रहेगा कि हम दोनों आपस में द्वन्द्वयुद्ध कर लें । अश्वग्रीव भी त्रिपष्ठ के इस प्रस्ताव से सहमत हो गया और दोनों में भयंकर द्वन्द्वयुद्ध चल पड़ा। अन्ततोगत्वा प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव, वासुदेव त्रिपृष्ठ द्वारा यद्ध में मारा गया। इस प्रकार त्रिपृष्ठ अर्द्ध-भरत का अधिपति वासुदेव हो गया।
त्रिपृष्ठ और अश्वग्रीव के बीच का यह युद्ध भगवान् श्रेयांसनाथ को केवलज्ञान प्राप्त होने से पूर्व हुआ था।
वासुदेव त्रिपष्ठ के यहां किसी दिन कुछ संगीतज्ञ, जो अत्यन्त मधुर स्वर से संगीत प्रस्तुत करने में दक्ष थे, आये । शयन का समय होने से त्रिपृष्ठ ने शय्यापाल को आज्ञा दी कि जिस समय मुझे नींद पा जाय, तत्काल संगीत बन्द करा देना।
संगीत की मधुर कर्णप्रिय ध्वनि की मस्ती में भूलकर शय्यापाल ने त्रिपृष्ठ को निद्रा आ जाने पर भी संगीत बन्द नहीं कराया। रात भर मंगीत चलता
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