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________________ श्रेयांस का प्रभाव ] भ० श्री श्रेयांसनाथ २१५ रहा, सहसा त्रिपृष्ठ जाग उठे और क्रुद्ध होकर शय्यापाल से पूछा - "अरे ! संगीत बन्द क्यों नहीं कराया ?" शय्यापाल ने कहा-“महाराज ! संगीत मुझे इतना कर्णप्रिय लगा कि समय का कुछ भी ध्यान नहीं रहा ।" त्रिपृष्ठ ने क्रुद्ध हो अन्य सेवकों को आदेश दिया कि शीशा गरम करके उसके कानों में उंड़ेल दिया जाय । राजाज्ञा को कौन टाले ? शय्यापाल के कानों में गरम २ शीशा उंड़ेल दिया गया और वह तड़प-तड़प कर मर गया । इस तरह के क्रूर कर्मों से वासुदेव त्रिपृष्ठ ने घोर नरक आयु का बन्ध कर लिया । क्रूर अध्यवसाय से उसका सम्यक्त्वभाव खंडित हो गया । ८४ लाख वर्ष की आयु भोगकर वह सातवें नरक का अधिकारी बना । बलदेव अचल ने जब भाई का मरण सुना तो शोक से आकुल हो गये, विवेकी होकर भी अविवेकी की तरह करुण स्वर में विलाप करने लगे । बारबार उठने की आवाज देने पर भी त्रिपृष्ठ महानिद्रा से नहीं उठे तो प्रचल मूर्छित हो भूतल पर गिर पड़े। कालान्तर में मूर्छा दूर होने पर वृद्धजनों से प्रबोधित किये गये । दुःख में वीतराग के चरण ही एकमात्र आधार होते हैं, यह समझकर बलदेव भी प्रभु श्रेयांसनाथ के चरणों का ध्यान कर और उनकी वाणी का स्मरण कर संसार की नश्वरता के बारे में सोचते हुए सांसारिक विषयों से पराङमुख हो गये ।' आखिर धर्मघोष प्राचार्य की वारणी सुनकर अचल बलदेव विरक्त हुए और जिनदीक्षा ग्रहण कर तप-संयम से सकल कर्मों का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गये । इनकी ८५ लाख वर्ष की आयु थी । धर्म परिवार श्रेयांसनाथ के संघ में निम्न गरण एवं गरणधरादि परिवार हुआ : - छिहत्तर (७६) sypy गणधर केवली मनः पर्यवज्ञानी -- - छ हजार पांच सौ (६,५०० ) छ हजार ( ६,०००) १ श्रेयांसस्वामिपादानां स्मरत् श्रेयस्करीं गिरम् । संसारासारतां ध्यायन् विषयेभ्यो पराङमुखः || त्रि०४।१।६०२ ।। २ कहीं पर ६६ का उल्लेख भी मिलता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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