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________________ २१२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [राज्य शासन पर दाक्षा और पारणा भोग्य-कर्म के क्षीण होने पर जब आपने संयम ग्रहण करने की इच्छा की, तब लोकान्तिक देवों ने अपनी मर्यादा के अनुसार सेवा में प्राकर प्रभु से प्रार्थना की । फलतः वर्ष भर तक निरन्तर दान देकर एक हजार अन्य राजाओं के साथ बेले की तपस्या में आपने दीक्षार्थ अभिनिष्क्रमण किया और फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी को श्रवण नक्षत्र में सहस्राम्रवन के अशोक वृक्ष के नीचे सम्पूर्ण पापों का परित्याग कर आपने विधिपूर्वक प्रवज्या स्वीकार की। दूसरे दिन सिद्धार्थपुर में राजा नन्द के यहां प्रभु का परमान्न से पारणा सम्पन्न हुआ। केवलज्ञान दीक्षा के पश्चात् दो मास तक छद्मस्थभाव में आप विविध ग्राम-नगरों में विचरते हुए आगत कष्टों को सहन करने में अचल-स्थिर बने रहे । माघ कृष्णा अमावस्या को क्षपकश्रेणी द्वारा मोह-विजय कर शुक्लध्यान की उच्च स्थिति में घाति-कर्मों का सर्वथा क्षय कर षष्ठ तप से अापने केवलज्ञान और केवलदर्शन की उपलब्धि की। केवली होकर प्रभु ने देव-मानवों की विशाल सभा में श्रुति-चारित्र धर्म की देशना दी और चतुर्विध संघ की स्थापना कर, आप भाव-तीर्थकर कहलाये। राज्य शासन पर श्रेयांस का प्रभाव केवलज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् भगवान् श्रेयांसनाथ विचरते हुए पोतनपुर पधारे । भगवान् के पधारने की शुभ सूचना राजपुरुष ने तत्कालीन प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ को दी। त्रिपृष्ठ यह शुभ समाचार सुनकर इतना अधिक प्रसन्न हुआ कि उसने शुभ संदेश लाने वाले को साढ़े बारह करोड़ मुद्राओं से पुरस्कृत किया और अपने बड़े भाई अचल बलदेव के साथ भगवान् के चरणारविन्दों को वन्दन करने गया। भगवान् की सम्यक्त्व-सुधा बरसाने वाली वाणी को सुनकर दोनों भाइयों ने सम्यक्त्व धारण किया।' यह त्रिपृष्ठ वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम वासुदेव और इचके भाई अचल प्रथम बलदेव थे । १ सम्यक्त्वं प्रतिपेदाते बलभद्रहरी पुनः ॥ त्रि० पु० च० ४।११८४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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