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________________ बड़ा कारण यह था कि संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और पुरानी राजस्थानी ( राजस्थानी गुजराती मिश्रित ) इन सभी प्राच्य भारतीय भाषाओं में समान रूप से निर्बाध गति रखने वाला कोई ऐसा विद्वान् इतिहास-समिति को नहीं मिला, जो इन भाषाओं के अगाध साहित्य का ऐतिहासिक शोध-दृष्टि से निष्ठापूर्वक अहर्निश अध्ययन कर सारभूत ऐतिहासिक सामग्री को आचार्यश्री के समक्ष प्रस्तुत कर सके। इतना सब कुछ होते हुए भी आचार्यश्री ऐतिहासिक सामग्री के संकलन, आलेखन एवं चिन्तन-मनन में निरत रहे। आप श्री ने मरुस्थल से सागर तट तक के गुजरात प्रदेश के विहार काल में विभिन्न ज्ञान भण्डारों से उपलब्ध महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक पट्टावलियों का चयन संशोधन किया। उनके आधार पर एक सारभूत क्रमबद्ध एवं संक्षिप्त ऐतिहासिक काव्य की रचना की । उन पट्टावलियों में से आधी के लगभग पट्टावलियों का इतिहास समिति ने डॉ. नरेन्द्र भानावत से सम्पादन करवा कर सन् १९६८ में "पट्टावली प्रबन्ध संग्रह " नामक ग्रन्थ का प्रकाशन किया । १९७० के मई मास के अन्त में आचार्यश्री के जयपुर नगर में शुभागमन पर, "महापुरुषों द्वारा चिंतित समष्टिहित के कार्य अधिक समय तक अवरुद्ध नहीं रहते, अगतिमान नहीं रहते"- यह चिर सत्य चरितार्थ हुआ। जैन प्राकृत, - अपभ्रंश आदि सभी प्राच्य भाषाओं में समान गति रखने वाले जिस विद्वान् की विगत पाँच-छः वर्षों से खोज थी, वह आचार्यश्री को जयपुर आने पर अनायास ही मिल गया । इतिहास - समिति की मांग पर श्री प्रेमराजजी बोगावत, राजस्थान विधानसभा से उन्हीं दिनों अवकाश प्राप्त श्री गजसिंह राठौड़, जैन - न्याय-व्याकरण तीर्थ को आचार्यश्री की सेवा में दर्शनार्थ लाये। बातचीत के पश्चात् आचार्यश्री द्वारा रचित जैन इतिहास की काव्य कृति — "आचार्य चरितावली" सम्पादनार्थ एवं टंकणार्थ इतिहास-समिति ने श्री राठौड़ को दी। इसके सम्पादन एवं इतिहास विषयक पारस्परिक बातचीत से प्रमुदित हो आचार्यश्री ने फरमाया — "इसका सम्पादन आपने बहुत शीघ्र और समुचित रूप से सम्पन्न कर दिया, गजसा ! हमारा एक बहुत बड़ा कार्य पाँच-छः वर्षों से रुका सा पड़ा है, आप इसे गति देने में सहयोग दीजिये ।" जून, १९७० में श्री राठौड़ ने इतिहास के सम्पादन का कार्य सम्भाला । समवायांग, आचारांग, विवाह प्रज्ञप्ति आदि शास्त्रों, आवश्यक चूर्णि, चउवन्न महापुरिस चरियं, वसुदेव हिण्डी, तिलोय पण्णत्ती, सत्तरिसय द्वार, पउम चरिय गच्छाचार पइण्णय, अभिधान राजेन्द्र (७ भाग) षट्खण्डागम, धवला, जय धवला ( ५ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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