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लेने के अतिरिक्त इस दिशा में किसी प्रकार की प्रगति नहीं हो सकी।
अन्ततोगत्वा सन् १९६५ में यशस्विनी रत्नवंश श्रमण परम्परा के आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज ने समुद्र मन्थन तुल्य श्रमसाध्य, समयसाध्य, इतिहास-निर्माण के इस अतीव दुष्कर कार्य को दृढ़ संकल्प के साथ अपने हाथ में लिया। संवत् १९२२ (सन् १९६५) के बालोतरा चातुर्मासावास काल में संस्कृत, प्राकृत, आगम, आगमिक साहित्य और इतिहास के महामनीषी लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज सा. के उद्बोधनों एवं निर्देशन में न्यायमूर्ति श्री इन्द्रनाथ मोदी, उच्चकोटि के जैन विद्वान् श्री दलसुखभाई मालवणिया, डॉ. नरेन्द्र भानावत आदि से परामर्श के साथ इतिहास समिति का निर्माण किया गया। इतिहास-समिति का अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री इन्द्रनाथ मोदी को, मंत्री श्री सोहनमलजी कोठारी को और कोषाध्यक्ष श्री पूनमचन्दजी बड़ेर को सर्वसम्मति से मनोनीत किया गया। इतिहास-निर्माण के इस कठिन कार्य में सक्रिय सहयोग देने के लिए इतिहास-समिति द्वारा अनेक विद्वान् सन्तों की सेवा में अनेक बार विनम्र प्रार्थनाएं की गईं।
बालोतरा चातुर्मासावास की अवधि के समाप्त होते ही आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज सा. ने स्वेच्छापूर्वक अपने हाथ में लिये गये इस गुरुतर कार्य को पूरा करने के दृढ़-संकल्प के साथ बालोतरा से गुजरात की और विहार किया। मरुस्थल एवं गुजरात प्रदेश में ग्रामानुग्राम अप्रतिहत विहार करते हुए आपने पाटन, सिद्धपुर, पालनपुर, कलोल, खेड़ा, खम्भात, लींबडी, बड़ौदा, अहमदाबाद आदि नगरों के शास्त्रागारों, प्राचीन हस्तलिखित ज्ञान भण्डारों के अथाह ज्ञान समुद्र का मन्थन किया, प्राचीन जैन वाङ्मय का आलोडन किया और सहस्रों प्राचीन ग्रन्थों से सारभूत ऐतिहासिक सामग्री का अथक श्रम के साथ संकलन किया। वह सम्पूर्ण संकलन हमारी अनमोल ऐतिहासिक थाती के रूप में आज श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, शोध-संस्थान, लाल भवन, जयपुर में सुरक्षित है।
संवत् २०२३ तद्नुसार सन् १९६६ के अहमदाबाद चातुर्मास में विधिवत इतिहास-लेखन का कार्य प्रारम्भ किया गया। तदनन्तर एक चातुर्मासावासावधि में इतिहास समिति ने एक सुशिक्षित नवयुवक को विद्वान् मुनिश्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री की सेवा में भी इस कार्य को गति देने के लिए रखा। किन्तु सन १९७० के जून मास तक इस कार्य में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई। इसका एक बहुत
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