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________________ दीक्षा और पारणा] भ० श्री सुमतिनाथ १९५ . वीक्षा और पारणा ___ लोकान्तिक देवों की प्रार्थना से वर्षीदान देकर एक हजार राजाओं के साथ आप दीक्षार्थ निकले और वैशाख शक्ला नवमी के दिन मघा नक्षत्र में सिद्धों को नमस्कार कर प्रभु ने पंचमुष्टिक लोच किया और सर्वथा पापकर्म का त्याग कर मुनि बन गये। .. । उस समय आपको षष्टभक्त-दो दिन का निर्जल तप था । दूसरे दिन विहार कर प्रभु विजयपुर पधारे और वहां के महाराज पद्म के यहां तप का प्रथम पारणा स्वीकार किया। केवलज्ञान व देशना बीस वर्षों तक विविध प्रकार की तपस्या करते हुए प्रभु छद्मस्थ दशा में विचरे । धर्मध्यान और शुक्लध्यान से बड़ी कर्म निर्जरा की । फिर सहस्राम्र वन में पधार कर ध्यानावस्थित हो गये। शुक्लध्यान की प्रकर्षता से चार घातिक कर्मों के ईन्धन को जला कर चैत्र शुक्ला एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में केवलज्ञान और केवलदर्शन की उपलब्धि की। ___ केवलज्ञान की प्राप्ति कर प्रभु ने देव, दानव और मानवों की विशाल सभा में मोक्ष-मार्ग का उपदेश दिया और चतुर्विध संघ की स्थापना कर आप भाव-तीर्थंकर कहलाये।। धर्म परिवार इनके संघ में निम्न परिवार था :गणधर - एक सौ (१००) केवली - तेरह हजार (१३,०००) मनः पर्यवज्ञानी - दस हजार चार सौ पचास (१०,४५०) अवधिज्ञानी - ग्यारह हजार (११,०००) चौदह पूर्वधारी - दो हजार चार सौ (२,४००) वैक्रिय लब्धिधारी -अठारह हजार चार सौ (१८,४००) वादी - दस हजार छ सौ पचास (१०,६५०) साधु - तीन लाख बीस हजार (३,२०,०००) -पांच लाख तीस हजार (५,३०,०००) श्रावक - दो लाख इक्यासी हजार (२,८१,०००) श्राविका - पांच लाख सोलह हजार (५,१६,०००) परिनिर्वाण चालीस लाख पूर्व की आयु में से प्रभु ने दस लाख पूर्व तक कुमारावस्था, उनतीस लाख ग्यारह पूर्वांग राज्यपद, बारह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व तक गरित्र-पर्याय का पालन किया, फिर अन्त समय निकट जान कर एक मास का अनशन किया और चैत्र शुक्ला नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र में चार अघाति-कर्मों का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो निर्वाण-पद प्राप्त किया। साध्वी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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