________________
. १९४
जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[नामकरण ।
उचित निर्णय पर नहीं पहुंच सके और इसी ऊहापोह में उन्हें भोजन के लिए जाने में देर हो गई।
- जब रानी सुमंगला को यह पता लगा तो वह महाराज के पास आयी और बोली-"स्वामिन् ! आज भोजन में इतनी देर क्यों ?"
जब महाराज ने सारी कथा कह सुनायी तो सुमंगला बोली-"महाराज! आप भोजन और आराम करें । मैं शीघ्र ही इस समस्या का हल निकाल देती हूं।"
ऐसा कह कर उसने दोनों सेठानियों को बुलाकर उनकी बातें सुनीं और बोलीं-"मेरे गर्भ में तीन ज्ञान का धारक अतिशय पुण्यवान् प्राणी है । वह जन्म लेकर तुम्हारे इस विवाद का निर्णय कर देगा, तब तक बच्चे को मेरे पास रहने दो । मैं सब तरह से इसकी देखभाल और लालन-पालन करती रहूंगी।" ___इस पर विमाता बोली-"ठीक है, आप इसे अपने पास निर्णय होने तक रखें, मुझे आपकी शर्त स्वीकार है।"
मगर जननी का हृदय अपने प्राणप्रिय पुत्र के इस निरवधि-वियोग के दारुण दुःख को कैसे सहन कर लेता ? वह जोरों से चीख उठी-"नहीं, मुझे
आपकी यह शर्त स्वीकार नहीं है । मैं अपने नयन-तारे को इतने समय तक अपने से अलग रखना पसन्द नहीं करूंगी । मैं अपने प्राण त्याग सकती हूं किन्तु पुत्र का क्षणिक त्याग भी मेरे लिये असह्य है।"
रानी सुमंगला ने उसकी बातों से समझ लिया कि पुत्र इस ही का है। क्योंकि कोई भी जननी अपने अंश को परवशता के बिना अपने से अलग रखना स्वीकार नहीं कर सकती । इसी आधार पर उन्होंने धन सहित पुत्र की वास्तविक अधिकारिणी उस ही को माना । इस तरह रानी ने इस विकट समस्या का समाधान अपनी सद्बुद्धि से कर दिया।' .. यह सुन कर उपस्थित जनों ने एक स्वर से कुमार का नाम सुमतिनाथ रखने में अपनी सम्मति दे दी। इस प्रकार कुमार का नाम सुमतिनाथ रखा गया।
विवाह और राज्य युवावस्था में प्रविष्ट होने पर महाराज मेघ ने योग्य कन्याओं से उनका पाणिग्रहण कराया । उनतीस लाख पूर्व वर्षों तक राज्य-पद का उपभोग कर जब उन्होंने भोग कर्म को क्षीण हुआ समझा तो संयम धर्म के लिए तत्पर हो गये। १ गम्भगते भट्टारए माताए दोण्हं सवत्तीणं छम्मासितो ववहारो चिण्णो
एत्यं असोगवर पादवे एस मम पुत्तो महामती छिदिहिति, ताए जावत्ति भरिणतालो, इतरी भणिति एवं होतु, पुत्तमाता गच्छतित्ति णातूणं, छिण्णो एतस्स गन्भगतस्स गुणेरणंति सुमति जातो ।। आवश्यक चूणि पूर्व भाग, पृ० १०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.