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[ऊर्ध्व लोक]
भ० श्री सुमतिनाथ
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देवों के इन्द्र, सामानिक, त्रायविंश, पारिषद, आत्मरक्षक, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, भाभियोगिक और किल्विषी ये दश विभाग होते हैं । इसी कारण इन बारह देवलोकों को १२ कल्प के नाम से भी अभिहित किया जाता है । केवल पहले के दो देवलोकों में ही देवियां उत्पन्न होती हैं शेष में नहीं । प्रथम और द्वितीय कल्प में उत्पन्न होने वाली देवियां दो प्रकार की होती हैं- एक तो परिग्रहीता और दूसरी अपरिग्रहीता । अपरिग्रहीता देवियां ऊपर के प्रांठवें स्वर्ग तक जाती हैं । प्रथम और दूसरे स्वर्ग की परिग्रहीता देवियां परिणीता कुलीन मानव स्त्रियों के समान अपने-अपने दाम्पत्य जीवन में उन्हीं देवों के साथ दाम्पत्य जीवन का सुखोपभोग करती हैं, जिन देवों की वे परिग्रहीता देवियां हैं। प्रथम और दूसरे स्वर्ग के देव परिग्रहीता और कतिपय अपरिग्रहीता दोनों प्रकार की देवियों के साथ विषय सुख का रसास्वादन करते हुए काया से इन देवियों का उपभोग करते हैं । अतः प्रथम के इन सौधर्म एवं ईशान दोनों. कल्पों के देवों को काय परिचारक देव कहा गया है । तोसरे सनत्कुमार एवं चौथे माहेन्द्र कल्प के देव प्रथम तथा द्वितीय कल्प की अपरिग्रहीता देवियों का स्पर्श मात्र से सेवन करते हैं, अत: तीसरे और चौथे कल्प के देवों को स्पर्श परिचारक देव कहा गया है । पाँचवें ब्रह्मलोंक और छठे लान्तक कल्प, के देव प्रथम तथा द्वितीय कल्प की अपरिग्रहीता देवियों का रूप मात्र देख कर ही अपनी कामवासना की तृप्ति कर लेते हैं, अत: पांचवें और छठे देवलोक के देवों को रूपपरिचारक देव कहा गया है। सातवें सहस्रार और आठवें महाशुक्र कल्प के देव प्रथम एवं द्वितीय कल्प की अपरिग्रहीता देवियों का, उनके शब्दों (गीतसंभाषण) मात्र से सेवन करते हैं, अतः सातवें और पाठवें कल्प के देवों को शब्दपरिचारक देव कहा गया है । प्रानत, प्राणत, आरण और अच्यूत-क्रमश: नवें, दशवें, ग्यारहवें और बारहवें--इन चार उपरितन कल्पों के देव अपरिग्रहीता देवियों का मन मात्र से चिन्तन कर अपनी विषय वासना की तप्ति कर लेते हैं, अतः मानत आदि ऊपर के चारों कल्पों के देवों को मन परिचारक देव कहा गया है।'
जम्बद्वीप के मध्यवर्ती मेरु पर्वत से दक्षिण की ओर ऊध्र्वलोक में तारागण, सूर्य, चन्द्र, ग्रह और नक्षत्रात्मक ज्योतिषी मण्डल से अनेक कोटानकोटि योजन ऊपर अर्द्ध चन्द्राकार प्रथम सौधर्म कल्प और मेरु के उत्तरवर्ती ऊर्ध्वलोक में १ दोसु कप्पेसु देवा कायपरियारगा पणत्ता तं जहा-सौहम्मे चेक ईसाणे पेव । दोसु कप्पेसु
देवा फासपरियारगा पण्णत्ता तं जहा-सणंकुमारे चेव माहिंदे व । दोसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा पण्णत्ता तं जहा-बंगलोए व लंतए चेव । दोसु कप्पेसु देवा सहपरियारगा पण्णत्ता तं जहा-महासुक्के चेव सहस्सारे बेव। (टीका) पानतादिषु चतुर्यु कल्पेषु मनः परिचारका देवा भवन्तीति बक्तम्यम् ।
-स्थानांग. ठाणा २
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