________________
का पूर्वभव ]
भगवान् श्री सुमतिनाथ
स्वल्प समय पश्चात् ही रात्रि के अन्तिम प्रहर में सुखप्रसुप्ता महादेवी सुदर्शना ने एक स्वप्न देखा कि एक केसरिकिशोर उसके मुख में प्रविष्ट हो गया है । भयभीत हो महारानी उठी और उसने तत्काल अपने पति के शयनकक्ष में जा उन्हें उस स्वप्नदर्शन का वृत्तान्त सुनाया । स्वप्नदर्शन विषयक महारानी का कथन सुनकर महाराज विजयसेन ने हर्षानुभव करते हुए कहा - "महादेवी ! कुलदेवी के कथनानुसार तुम्हें सिंह के समान पराक्रमी एवं प्रतापी पुत्ररत्न की प्राप्ति होने वाली है ।
गर्भकाल पूर्ण होने पर महारानी सुदर्शना ने सर्व सुलक्षण सम्पन्न एवं परम सुन्दर तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया और अपने जीवन को सफल समझा । राज्य भर में उत्सवों की धूम मच गई। बन्दियों को कारागारों से मुक्त किया गया । महाराज विजयसेन ने स्थान-स्थान पर दानशालाएं, भोजनशालाएं खोल दीं और बड़ी उदारतापूर्वक स्वजन- परिजन पुरजन श्रर्थीजनों को समुचित सम्मान - दानादि से सन्तुष्ट किया ।
नामकरण - महोत्सव के आयोजन में अपने सम्बन्धियों, परिजनों एवं पौरजनों आदि को ग्रामन्त्रित -सम्मानित कर राजकुमार का नाम पुरुषसिंह रखा । राजसी ठाट-बाट से राजकुमार का लालन-पालन किया गया । शिक्षायोग्य वय में राजकुमार को सुयोग्य शिक्षाविदों से सभी प्रकार की विद्यानों एवं कलाओं की शिक्षा दिलाई गई । राजकुमारोचित सभी विद्यानों में निष्णात हो राजकुमार पुरुषसिंह ने युवावस्था में पदार्पण किया । माता-पिता ने बड़े ही हर्षोल्लासपूर्वक राजकुमार पुरुषसिंह का रूपलावण्यवती अनिन्द्य सौन्दर्य सम्पन्ना आठ सुलक्षणी राजकन्याओं के साथ विवाह किया । सर्वांग सुन्दर सुस्वस्थ व्यक्तित्व का धनी अतुल बलशाली राजकुमार पुरुषसिंह अपनी आठ युवराशियों के साथ विविध ऐहिक भोगोपभोगों का सुखोपभोग करता हुआ प्रमोद-प्रमोदपूर्ण सुखमय जीवन व्यतीत करने लगा । विशिष्ट विज्ञान, कुल, शील, रूप, विनयादि सर्व गुरणों से सम्पन्न एवं शस्त्रास्त्रादि समस्त विद्याओं में कुशल राजकुमार पुरुषसिंह सभी पुरजनों व परिजनों के मन को मुग्ध एवं नयनों को आनन्दित करने वाला था । उसका सुन्दर स्वरूप कामदेव के समान इतना सम्मोहक था कि जिस ओर से वह निकलता, वहाँ आबालवृद्ध प्रजाजनों के समूह उसे अपलक दृष्टि से देखते ही रह जाते थे । संक्षेप में कहा जाय तो वह सब ही को प्रारणाधिक प्रिय था ।
१७७
कालान्तर में एक दिन प्रमोदार्थ शंखपुर के बहिस्थ एक सुरम्य कुमार ने मुनिवृन्द से परिवृत विनयानन्द पर बैठे देखा । श्राचार्य श्री को देखते ही
Jain Education International
राजकुमार पुरुषसिंह मनोविनोद एवं ग्रामोदउद्यान में गया । उस उद्यान में राजनामक आचार्य को एक सुरम्य स्थान राजकुमार पुरुषसिंह का हृदय हर्षाति
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org